Atmadharma magazine - Ank 343
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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गुरुदेव–प्रत्ये अपूर्व–अंजलि
हे गुरुदेव! अमने जिनमार्गमां लेवा माटे, अने अमने
सम्यक्त्व देवा माटे ज आपनो विदेहथी अहीं अवतार थयो छे.
आपना जन्मने अमे अमारा सम्यक्त्वनो ज जन्म मानीए
छीए. तेथी ए जन्मोत्सव उजवतां आत्मा साचा आनंदथी
उल्लसित थाय छे.
आपना प्रतापे अनेक जीवोना अंतरमां धर्मनी
परिणति जागी रही छे, ने बहारमां पण धर्मभावनाना एक–
एकथी चडियाता प्रसंगो बन्या करे छे. ए रीते आपना द्धारा
अंर्त अने बाह्य बन्ने रीते सदैव वृद्धिगत थई रहेली
तीर्थप्रभावना ज्यारे तेनी उत्कृष्ट परकाष्टाए पहोंचशे त्यारे
अमे आपने बदले एक तीर्थंकर परमात्माने साक्षात् देखीशुं.....
अने साथे देखीशुं गणधरादि वैभवने! ए वखतनो आपनो
आत्मवैभव अने आपनो धर्मपरिवार कोई अजबगजबना
हशे.
जेमना प्रतापे जिनेन्द्रभगवानना पंचकल्याणक
उजववानुं सुभाग्य मळ्‌युं, अने जेमनी ८३ मी जन्मजयंतिनो
मंगल उत्सव पण आनंदपूर्वक अपूर्व भावथी उजव्यो, ते
मंगलकारी गुरुदेवना चैतन्य बगीचामांथी चूंटेला ८३ पुष्पोनी
एक मंगलमाळा आत्मधर्मना जिज्ञासुओने धर्मप्रेमपूर्वक
समर्पण करुं छुं. बंधुओ, आ पुष्पमाळानी सुगंध तमारा
चैतन्यरसने पुष्ट करशे, तेना भावोना धोलनवडे तमने
भेदज्ञान थशे..... अने त्यारे आनंदना कोई अपूर्व भावसहित
देव–गुरुप्रत्ये श्रद्धांजलि नीकळशे. एवा भावे गुरुदेव प्रत्ये
अर्पण करेली मंगळमाळानी अंजलि आप आ अंकमां वांचशो.