Atmadharma magazine - Ank 343
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : द्वि. वैशाख: २४९८
३३ सम्यग्दर्शन भूमिकाअनुसार अशुभपरिणाम वखते पण रागवगरनी शुद्ध
परिणति वर्ती ज रही छे. बहारमां नारकीकृत दुःख वखते ‘पण चैतन्य
परिणतिनी शांति तेने वर्ते ज छे, ते परिणति तो आनंदरसनी गटागटी करे छे.
तेम ज बहारमां ईन्द्रपदना वैभवविलास होवा छतां धर्मीनी चैतन्यपरिणति ते
तेनाथी छूटी ज वर्ते छे. राग अने ज्ञानचेतना एक काळे वर्ते छे पण ते बन्नेनुं
कार्य भिन्न छे, बन्नेनी जात जुदी छे, तेथी भिन्नताने जे ओळखे तेने
समकितीनी साची ओळखाण थाय, ने भेदज्ञान थाय.
३४ अहो, भगवान आदिनाथे जे धर्मतीर्थ प्रवर्ताव्युं ते तीर्थंकर मोक्षमार्ग जेओ नथी
साधता, ने अन्य कुमार्गमां प्रवर्ते छे तेओ दीर्ध संसारमां रखडे छे निर्मोही–
सम्यग्द्रष्टि ते तो मोक्षमार्गमां छे एटले प्रशंसनीय छे; पण मोहवान मिथ्याद्रष्टि
जीव पंचमहाव्रत पाळे तोपण मोक्षमार्ग नथी. तेथी ते प्रशंसनीय नथी.
सम्यग्दर्शन वगर कदी मोक्षमार्ग थतो नथी.
३प मोक्षमार्गरूप रत्नत्रयधर्म छे, ने मुनिओने सर्वदेश होय छे ने गृही–श्रावकोने
एकदेश होय छे. चैतन्यना आनंदमां झुलनारा जैन मुनिओ निर्ग्रंथ दिगंबर
होय छे ने अंदर रत्नत्रयधर्म वर्ते छे. त्रण कषायनो अभाव छे. अव्रत
सम्यग्द्रष्टिने व्रतादि न होवा छतां ईन्द्र पण तेनी प्रशंसा करे छे के वाह!
चैतन्यद्रष्टिधारक धर्मात्मा! तुं मोक्षना मार्गमां छो. मुनिओ तो मोक्षना मार्गमां
छे, तुं पण मोक्षना पंथमां छो. तारो अवतार धन्य छे.... तारो आत्मा कृतकृत्य
छे–एम कहीने कुंदकुंदस्वामीए पण अष्टापाहुडमां सम्यग्द्रष्टि श्रावकनी प्रशंसा
करी छे.
सम्यग्दर्शन सहित अव्रती श्रावक पण आवो प्रशंसनीय छे तो पछी
रत्नत्रय सहित मुनिराजना महिमानी तो शी वात ! ए तो पंचपरमेष्ठी
भगवाननी पंक्तिमां बिराजे छे.
३६ शुद्धआत्माने अहीं ‘ज्ञायकभाव’ कहीने वर्णव्यो छे. एकवार एकांतमा ज्ञायक
भावनो विचार करतां करतां गुरुदेवे शास्त्रना केटलाक बोलनी नोंध करेली, ते
बधा बोल ज्ञायकरूप शुद्धआत्माना वाचक छे. ते नोंध नीचे मुजब छे–
१. निज कारण परमात्मा २. शुद्ध आत्मा
३. कारण शुद्धजीव
४. चैतन्य चमत्कारमात्र प. कारण समयसार ६. शुद्धद्रव्य