परिणतिनी शांति तेने वर्ते ज छे, ते परिणति तो आनंदरसनी गटागटी करे छे.
तेम ज बहारमां ईन्द्रपदना वैभवविलास होवा छतां धर्मीनी चैतन्यपरिणति ते
तेनाथी छूटी ज वर्ते छे. राग अने ज्ञानचेतना एक काळे वर्ते छे पण ते बन्नेनुं
कार्य भिन्न छे, बन्नेनी जात जुदी छे, तेथी भिन्नताने जे ओळखे तेने
समकितीनी साची ओळखाण थाय, ने भेदज्ञान थाय.
सम्यग्द्रष्टि ते तो मोक्षमार्गमां छे एटले प्रशंसनीय छे; पण मोहवान मिथ्याद्रष्टि
जीव पंचमहाव्रत पाळे तोपण मोक्षमार्ग नथी. तेथी ते प्रशंसनीय नथी.
सम्यग्दर्शन वगर कदी मोक्षमार्ग थतो नथी.
होय छे ने अंदर रत्नत्रयधर्म वर्ते छे. त्रण कषायनो अभाव छे. अव्रत
सम्यग्द्रष्टिने व्रतादि न होवा छतां ईन्द्र पण तेनी प्रशंसा करे छे के वाह!
चैतन्यद्रष्टिधारक धर्मात्मा! तुं मोक्षना मार्गमां छो. मुनिओ तो मोक्षना मार्गमां
छे, तुं पण मोक्षना पंथमां छो. तारो अवतार धन्य छे.... तारो आत्मा कृतकृत्य
छे–एम कहीने कुंदकुंदस्वामीए पण अष्टापाहुडमां सम्यग्द्रष्टि श्रावकनी प्रशंसा
करी छे.
भगवाननी पंक्तिमां बिराजे छे.
बधा बोल ज्ञायकरूप शुद्धआत्माना वाचक छे. ते नोंध नीचे मुजब छे–
१. निज कारण परमात्मा २. शुद्ध आत्मा