: द्वि. वैशाख: २४९८ आत्मधर्म : ३५ :
७. परमपारिणामिकभाव ८. भगवान ज्ञानस्वभाव ९. परमभाव
१०. भगवान ज्ञाता द्रव्य ११. परम तत्त्व १२.चित्तशक्तिमात्र भाव
१३. जीवतत्त्व १४. पंचमभाव १प. आत्मतत्त्व
१६. सहज ज्ञानशरीर १७. शुद्धभाव १८. निजद्रव्य
१९. ज्ञायकभाव २०. शुद्धतत्त्व २१. स्वद्रव्य
२प. स्वभाव भाव २६. नित्य तत्त्व २७. कारणआत्मा
२८. धु्रवतत्त्व २९. सामान्य ३०. शुद्धज्ञानचेतना
३१. आनंदधाम ३२. निजपद ३३. उपयोग
–आवा बीजा अनेक विशेषणो द्धारा संतोए शुद्धआत्मा देखाडयो छे.
३७ ‘ज्ञायक’ कहेतां कांई तेमां परज्ञेयनी उपाधि नथी; परज्ञेयने कारणे आने
ज्ञायकपणुं छे–एम नथी. पोते पोताना स्वरूपथी ज ज्ञायक छे. परज्ञेयने
जाणवाथी कांई तेने अशुद्धता नथी, केमके पोते तो ज्ञायकपणे ज रहीने जाणे छे.
परने जाणे ने पोताना स्वरूपने ज प्रकाशे त्यारे पण तेने स्वयं ज्ञायकपणुं ज
छे. आ रीते आत्मा स्वभावथी ज ज्ञायकभावपणे प्रकाशे छे. ज्ञान रागने जाणे
तोपण पोते रागरूप अशुद्ध थई जतुं नथी.
३८ ज्ञायकतत्त्व रागथी पार परमसूक्ष्म तत्त्व छे, छतां ते एवुं नथी के तेने जाणी ज
न शकाय. रागना अवलंबन वगर पोते पोताना स्वरूपने स्पष्ट–प्रत्यक्ष
अनुभवमां ल्ये एवी आत्मानी ताकात छे. अनंता संतो भेदज्ञानवडे आत्माने
अनुभवीने मोक्षमां पधार्या छे.
३९ ज्ञायकआत्मा ज्यारे अंतर्मुख थईने पोते पोताना स्वरूपने ज स्वसंवेदनपणे
प्रकाशे छे त्यारे छे त्यारे पोते ज ज्ञाता ने पोते ज ज्ञेय, ए रीते ज्ञातारूप कर्ता
ने ज्ञेय रूप कर्म ए बंनेनुं एकपणुं छे, ज्ञायक पोते ज पोताने प्रकाशे छे, तेमां
वच्चे रागनी अपेक्षा नथी. रागने जाणती वखते पण कांई रागने कारणे
ज्ञायकपणुं न हतुं, ज्ञायक पोते पोताथी ज ज्ञायक हतो, जेम स्वने प्रकाशती
वखते राग वगर पोते पोताथी ज ज्ञायक छे, तेम रागादि परज्ञेयने प्रकाशवाना
काळे पण पोते तो रागथी जुदो ज्ञायकभावपणे जप्रकाशे छे, रागकृत अशुद्धता
कांई ज्ञानमां नथी.