Atmadharma magazine - Ank 343
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 38 of 64

background image
: ३६ : आत्मधर्म : द्वि. वैशाख: २४९८
राग पोते अशुद्ध छे, पण रागने जाणनारुं ज्ञान कांई अशुद्ध नथी, ए तो
ज्ञाननुं स्व–पर–प्रकाशक सामर्थ्य ज प्रकाशे छे.
४० अहो, आवुं जुंदुं ने जुदुं ज्ञायकतत्त्व शुद्ध छे तेने लक्षमां तो ल्यो. ज्ञाता पोते,
ज्ञान पोते, ज्ञेय पण पोते; ज्ञाता–ज्ञान–ज्ञेयरूप एक ज्ञानमात्र शुद्धभाव हुं छुं–
एम धर्मी अनुभवे छे. ज्ञानना कल्लोलरूपे परिणमवा छतां ज्ञाता–ज्ञान–ज्ञेय
त्रण भेदरूपी धर्मी पोताने नथी अनुभवतो; हुं पोते ज्ञान, मारुं स्वतत्त्व
मारुं ज्ञेय, हुं पोते जाणनार ज्ञाता–आवा ज्ञाता–ज्ञेय–ज्ञाननी एकतारूप मारी
चैतन्यलीला छे. द्रव्यथी–क्षेत्रथी–काळथी के भावथी खंड–भेद कर्यां वगर सुविशुद्ध
एक चैतन्य मात्ररूपे हुं मने अनुभवुं छुं. तेमां बीजा कोईनी अपेक्षा नथी.
अहो, आवा चैतन्यनो निर्णय पण रागनी अपेक्षाथी पार छे. आवो निर्णय
अने अनुभव करनार जीवने आत्मामां अतीन्द्रिय आनंदसहित मोक्षना
भणकार आवी जाय छे. –आवी दशानुं नाम धर्म छे.
४१ धर्म एटले आत्माना आनंदनो स्वाद. धर्मीनुं ज्ञान स्वतत्ताने अवलंबतुं थकुं
मोक्षने साधे छे, परसत्ताना अवलंबनने ते मोक्षनुं साधन मानता नथी.
परसत्ताना अवलंबने थयेलो कोईपण भाव मोक्षनुं साधन थाय नहि. धर्मीने
भूमिकाअनुसार परावलंबन होय पण तेने मोक्षनुं कारण न माने, ते वखते
जेटलो स्वालंबी वीतरागभाव छे तेटलुं ज मोक्षनुं कारण छे. परावलंबी
कोईपण भावने जे उपादेय माने के मोक्षनुं कारण माने ते तो मिथ्याद्रष्टि छे.
४२ वाह रे वाह! आ तो फत्तेपुरना आंगणे चैतन्यना अमृत वरसी रह्या छे.
वीतरागी संतोए पंचमकाळमां पण चैतन्यना अमृत वरसाव्या छे. जे समजतां
चैतन्यनी फत्तेह थाय ने आनंदना पूर आवे–एवी आ वात छे.
४३ अरे जीव! तुं तो आत्मज्ञान न कर्युं, ने बीजा आत्मज्ञानी जीवोनी सेवा केम
करवी–ते पण तने न आवडयुं, तेथी शुद्धात्मानी प्राप्ति पूर्वे कदी तने न थई.
४४ ज्ञानीए केवो आत्मा अनुभव्यो छे–एने लक्षमां लईने तुं पण एवो अनुभव
कर तो ज ज्ञानीनी खरी उपासना थाय, अने शुद्धात्मानी पण उपासना थाय.
४प कोई भक्तिना एकला शुभरागथी एम माने के हुं ज्ञानीनी सेवा करुं छुं, तो एने
खरी सेवा कहेता नथी; केमके ‘ज्ञानी केवा छे एने तो तुं ओळखतो नथी तो तें
सेवा कोनी करी?