Atmadharma magazine - Ank 343
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 39 of 64

background image
: द्वि. वैशाख: २४९८ आत्मधर्म : ३७ :
४६ जो ज्ञानीने ओळखे तो रागथी जुदो आत्मा लक्षमां आवी ज जाय. एकला
रागवडे ज्ञानीनीसाची सेवा थाय नहि. जेवो ज्ञानीनो भाव छे तेवो ज्ञानभाव
(स + एव) पोतामां प्रगट करवो ते ज्ञानीनी साची सेवा छे.
४७ शुद्धद्रव्यनी द्रष्टिमां पर्याय ‘गौण’ छे. पर्यायनो कांई अभाव नथी. शुद्ध–
अशुद्धभावो छे ते पण आत्मानी पर्यायना धर्म छे. पण आत्माने
शुद्धस्वभावनी द्रष्टिथी जोवामां आवे त्यारे रागादि अशुद्धताथी जुदो एकरूप
चैतन्यभाव देखाय छे, पर्यायना भेद तेमां देखाता नथी.
४८ अहा, आवा आत्माने साधवो ते तो प्रभुनो मार्ग छे. वीतराग भगवंतोए
साधेलो आ मार्ग छे: ‘हरिनो मारग छे शूरानो’ आत्माना ज्ञान वडे मोहादिने
हरे ते हरि छे. आवा हरिनो मारग ते तो शूरवीरोनो मारग छे; ए कांई
रागवडे साधी शकतो नथी.
४९ अनंत गुणना स्वादथी भरेला एक ज्ञायकभावने अनुभवनार जीव, ते ज्ञायक
एक स्वभावनी द्रष्टिमां ‘हुं ज्ञान छुं, हुं दर्शन छुं, हुं चारित्र छुं, ’ एवा भेद
विकल्पने करतो नथी. एक आत्मामां त्रण भेदना विकल्प ते ज्ञानीनुं कार्य नथी.
गुणभेदना विकल्पथी पार ज्ञायकतत्त्वपणे धर्मी पोताने अनुभवे छे, ते
अनुभवमां चैतन्यना अनंतगुणनो अभेद स्वाद छे.
प० अभेद समजाववा माटे भेद पाड्या पण लक्ष तो अभेदनुं ज हतुं. भेदना
विकल्पमां अटकता आत्मानुं साचुं स्वरूप अनुभवमां आवतुं नथी. धर्मी शिष्य
गुणभेदना विकल्पथी पण छूटो पडीने, एक शुद्ध ज्ञायकभावपणे पोताने देखे छे.
आवुं स्वरूप देखनार जीव ते ज खरो पंडित छे. तेनी अभेदद्रष्टिमां गुणभेदनुं
कर्तृत्व नथी, माटे भेदनो अभाव कह्यो छे.
प१ भेदने देखतां विकल्प ऊठे छे, ने विकल्पनुं कर्तृत्व अज्ञानमां छे; माटे ज्ञानीने
तेनो अभाव कह्यो छे. ज्ञान–दर्शन–चारित्रनी निर्मळ्‌ परिणति तो धर्मीने छे,
तेनो कांई अभाव नथी; अभेद आत्मानी अनुभूतिमां के गुणभेद गौण थई
जाय छे, भेदनुं लक्ष रहेतु नथी.
प२ एक अभेदतत्त्वनी अनुभूतिमां बधा धर्मो समाई जाय छे. आ रीते अनंत
धर्मोवाळा एक धर्मीपणे ज्ञानी पोताने अनुभवे छे. जेमा पोताना अनंता धर्मो
एटले