: ४२ : आत्मधर्म : द्वि. वैशाख: २४९८
जो विमानवासी हू थाय, सम्यक्दर्शन बिन दुःख पाय;
तहँतें चय एकेन्द्रि तन धरै, यों परिवर्तन पूरे करै.
सम्यग्दर्शन वगर भवपरिभ्रमणनो कदी अंत न आवे.
७७ सम्यग्दर्शन शुं छे? अने ते केम थाय? तेनो अफर मंत्र समयसारनी ११मी
गाथामां आचार्यदेवे बताव्यो छे. (अहो! आ गाथाना प्रवचन द्धारा गुरुदेव
सम्यक्त्वनुं जे स्वरूप खोली रह्या छे ते समजतां अत्यारे ज सम्यग्दर्शन पामी
जवाय तेवुं छे. अत्यारे तो धर्मनो काळ छे, धर्मनी प्राप्तिनो अवसर छे.)
७८ अरे, चैतन्यतत्त्वना भूतार्थस्वभावमां अचेतनता केवी? तेमां रागनो विकल्प
केवो? चैतन्यतत्त्व पासे रागनुं काम कराववुं–ए तो तेने मारी नांखवा जेवुं छे.
भाई, चैतन्यना स्वभावमां रागादिभावो छे ज क््यां, के ते रागनो कर्ता थाय?
आवा स्वभावनी अनुभूति–ज्ञान–श्रद्धा ते सम्यग्दर्शन छे.
७९ शुद्धनयने आत्मा कह्यो छे, केमके ते शुद्धनयनी परिणति रागथी जुदी पडीने
अंदरना भूतार्थस्वभावमां एकमां अभेद थई छे. धर्मीने द्रव्य–पर्याय बंनेनुं
साचुं ज्ञान छे, पण पर्यायना भेदनो आश्रय तेने नथी.
८० अहा, आवा आत्माना लक्ष वगरनुं जीवन निरर्थक छे. जैनशासन आवा
आत्माना अनुभवमां समाय छे.
कोई कहे–पर्यायमां अशुद्धता छे ने!
तो कहे छे के भाई, अशुद्धता छे तेनी तो खबर छे, पण ए ज वखते
अशुद्धताथी पार जे चैतन्यस्वभाव पण सत्यपणे विद्यमान छे, ते स्वभावनी
सन्मुख थईने जो तो तने तारो आत्मा शुद्ध देखाशे; त्यां पर्यायमां पण एकली
अशुद्धता नहि रहे; भूतार्थनो अनुभव करनारी पर्याय पण रागथी छूटी पडीने
शुद्ध थशे–एटले के सम्यग्दर्शनादि थशे. सम्यग्दर्शन साथे महा आनंद थाय छे,
आत्मामां मोक्षनी छाप लागी जाय छे.
८१ हे गुरुदेव! अमने जिनमार्गमां लेवा माटे, अने अमने सम्यक्त्व देवा माटे ज
आपनो विदेहथी अहीं अवतार थयो छे........ आपना जन्मने अमे अमारा