आत्मा आस्रवोथी छूटे छे. एटले ज्ञानवडे ज आस्रव रोकाय छे. आवुं ज्ञान ते
मंगळ छे.
झूलनारा संत कुंदकुंदाचार्यदेव आ समयसारमां कहे छे के भाई! तारो
चैतन्यस्वरूप भगवान आत्मा तो अत्यंत पवित्र छे, ने रागादि पुण्य–पाप–
भावो तो अशुद्ध–अपवित्र छे. आम बंनेनी भिन्नता ओळखतांवेंत ज्ञान
पोताना आत्मस्वभावमां अभेद थईने परिणमे छे ने रागने छोडी दे छे.
एटले ज्ञानवडे ज संसारथी छूटकारो ने मोक्षनी प्राप्ति थाय छे. आवा
ज्ञानरूपी जे बीज ऊगी ते अतीन्द्रिय आनंदसहित ऊगी छे, ते मंगळ छे.
चैतन्यतेजथी चमकी रहेली पूनम वच्चे बिराजमान गुरुदेव सतीना द्रष्टांते
धर्मात्मानी धर्मपरिणतिनुं वर्णन करतां भावभीनी वाणीमां गाय छे के–
....हवे संसारना प्रेम हुं नहीं करुं....... ,
नहीं करुं रे..... नहीं करुं... हुं रागना प्रेम हवे नहि करुं.
लगनी लागीमारा चैतन्यप्रभुनी साथ......
हवे पुण्यना प्रेम हुं नहीं करुं..... रे.....