Atmadharma magazine - Ank 343
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ४४ : आत्मधर्म : द्वि. वैशाख: २४९८
“ऊगी छे मारे आनंदनी बीज”
(फत्तेपुर: वैशाख सुद बीजनुं प्रवचन)
आ ७२ मी गाथामां आत्माने भगवान कह्यो छे. ज्ञानस्वरूपी आत्मा
छे ते भगवान छे, अने रागादि भावो तेनाथी जुदा छे. आवा भेदज्ञानवडे
आत्मा आस्रवोथी छूटे छे. एटले ज्ञानवडे ज आस्रव रोकाय छे. आवुं ज्ञान ते
मंगळ छे.
आवुं भेदज्ञान थतां अंतरमांथी अतीन्द्रिय आनंदनो कण आवे छे. ने
अखंड ज्ञानसमुद्र पोते आनंदना तरंगरूपे उल्लसे छे. आनंदना झूलामां
झूलनारा संत कुंदकुंदाचार्यदेव आ समयसारमां कहे छे के भाई! तारो
चैतन्यस्वरूप भगवान आत्मा तो अत्यंत पवित्र छे, ने रागादि पुण्य–पाप–
भावो तो अशुद्ध–अपवित्र छे. आम बंनेनी भिन्नता ओळखतांवेंत ज्ञान
पोताना आत्मस्वभावमां अभेद थईने परिणमे छे ने रागने छोडी दे छे.
एटले ज्ञानवडे ज संसारथी छूटकारो ने मोक्षनी प्राप्ति थाय छे. आवा
ज्ञानरूपी जे बीज ऊगी ते अतीन्द्रिय आनंदसहित ऊगी छे, ते मंगळ छे.
गुरुदेव दस–बार हजार मुमुक्षुओनी भव्यसभाने चैतन्यरसना
आनंदमां झुलावी रह्या छे. नीचे उज्वल–धवल महान बीज, अने उपर
चैतन्यतेजथी चमकी रहेली पूनम वच्चे बिराजमान गुरुदेव सतीना द्रष्टांते
धर्मात्मानी धर्मपरिणतिनुं वर्णन करतां भावभीनी वाणीमां गाय छे के–
लगनी बांधी मारा आतमदेवनी साथ.....रे.......
....हवे संसारना प्रेम हुं नहीं करुं....... ,
नहीं करुं रे..... नहीं करुं... हुं रागना प्रेम हवे नहि करुं.
लगनी लागीमारा चैतन्यप्रभुनी साथ......
हवे पुण्यना प्रेम हुं नहीं करुं..... रे.....
पोताना चैतन्यना एकत्वमां शोभतो आत्मा बीजानो प्रेम केम करे?