वसतां आत्माने सम्यग्दर्शन सहित आनंदनी बीज ऊगे छे, ते महा मंगळ छे.
वडे आनंदमां मग्न थईने केवळज्ञान पामे छे. पण बीजा बे मुनिवरोने
विकल्प आव्यो के युधिष्ठिर वगेरेनुं शुं थयुं हशे! एक साधर्मी मुनिवरो
प्रत्येनो आवो शुभविकल्प ऊठतां तेमने एक भव करवो पड्यो, ने केवळज्ञान
न थयुं. शुभविकल्प पण संसारनुं कारण छे, ते कांई मोक्षनुं कारण नथी.
विकल्पथी जुदुं पडेलुं ज्ञान ज मोक्षनुं कारण छे.
सुखस्वरूप अने सदाय जेना सेवनथी सुख ज थाय –एवो सुखकारणरूप छे,
ते भगवान छे, तेना सेवनमां रागनी उत्पत्ति न थाय, तेना सेवनमां तो
अतीन्द्रिय सुख ज थाय. आवा आत्मानी रुचि–प्रीति करीने तेनी वात
सांभळवी ते पण मंगळ छे. अनंत सर्वज्ञ परमात्माए अने दिगंबर संतोए
जे मार्ग कह्यो ते ज परम सत्य मार्ग छे, अने ते ज मार्ग अहीं कहेवाय छे.
रागथी भिन्न ज्ञानस्वरूप आत्मानी सेवा करवी ते ज सुखनो मार्ग छे, ते ज
सर्वज्ञनो अने दिगंबर–संतोनो मार्ग छे. रागना सेवनवडे कदी सुखनुं वेदन
थाय नहि; तेमां तो दुःख छे. राग पोते रागने जाणतो नथी. रागने जाणनार
तो तुं पोते रागथी जुदो ज्ञानस्वरूप छो.
ऊगी छे, ज्ञानप्रकाश खील्यो छे ते मंगळ छे. अने ते आनंदनी बीज वधीने
केवळज्ञानरूपी पूनम ऊगशे.