Atmadharma magazine - Ank 343
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. वैशाख: २४९८ आत्मधर्म : ५९ :
न हता, ए तो चैतन्यनी शीतळताने अनुभवता थका आनंदमां ठर्या हता. चैतन्यमां
रागनो आताप पण नथी त्यां बहारनो आताप केवो? रागादिमां चैतन्य नथी,
चैतन्यमां रागादि नथी, एम बंनेनी तद्न भिन्नता छे.
अरे जीव! तुं बाह्य व्यवहारनी, शुभरागनी होंश करे छे तेने बदले आवा तारा
चैतन्यनी होंश कर. एकवार चैतन्यनो एवो उल्लास कर के आत्मा रागथी जुदो पडी
जाय. रागनुं वेदन अनंतकाळ कर्युं, एकवार रागथी जुदो पडीने चैतन्यनी परम शांतिनुं
वेदन कर. राग तो तारा आत्मानी शांतिनो घातक छे, तो ते रागनासेवनवडे शांति
तने क््यांथी मळशे? रागने जुदो पाडीने चैतन्यनुं सेवन कर तो ज तने आत्मानी
साची शांति वेदनमां आवे.
रागथी जुदुं चैतन्यस्वरूप स्वद्रव्य छे तेने हे जीव! तुं त्वराथी ग्रहण कर.... ने
तेनाथी विरुद्ध एवा रागादिना ग्रहणने छोड–ए वात श्रीमद् राजचंद्रजीए दश
अध्यात्मबोलमां करी छे. कल्याणना पंथनी सूझ रागवडे पडती नथी, रागथी जुदा
पडेला ज्ञानवडे ज कल्याणनो पंथ सूझे छे.
वैशाख सुद छठ्ठनी सवारे बामणवाडाना नुतन जिनमंदिरमां भगवानश्री
आदिनाथप्रभुनी मंगलप्रतिष्ठा थई. गुरुदेवना प्रतापे रोजरोज मंगल कार्य थई रह्या
छे. बे दिवस पहेलांं फत्तेपुरमां प्रभुनी प्रतिष्ठा करी, काले (पांचमे) रामपुरमां प्रभुनी
प्रतिष्ठा करी, अने आजे (छठ्ठे) बामणवाडामां प्रभुनी प्रतिष्ठा करी...... ए रीते चार
दिवसमां त्रण ठेकाणे जिनबिंबभगवंतोने बिराजमान करीने वैशाख सुद सातमे उदेपुर
तरफ प्रस्थान कर्युं.
आ आ अंक वांचता हशो त्यारे अमे मंदसौर (राजस्थान) मांई हईशुं. त्यार
पछी प्रतापगढ, रतलाम, बडनगर, ईन्दोर, मुंबई अने भावनगर थईने ता. १४
मीए सोनगढ पहोंचशुं. सोनगढना प्रवचनोनी मंगलप्रसादी लईने आवता अंकमां
आपने मळीशुं.
जय जिनेन्द्र