: जेठ : २४९८ आत्मधर्म : ७ :
भारतनी महिलाओने आवी प्रेरणा आपवा माटे पारणाझुलन पछी तरत
महिमासम्मेलन योजायुं हतुं. हजारो बहेनोए तेमां भाग लीधो हतो. आ संमेलनमां
पू. बेनश्री–बेन (चंपाबेन तथा शांताबेन) पण पधार्या हता, भारतनी महिलाओए
तेमनुं सन्मान कर्युं हतुं, अने तेओश्रीए भारतनी महिलाओने माटे आत्महितनो
मंगलसन्देश आप्यो हतो.
रात्रे समुद्रविजयमहाराजनो राजदरबार भरायो हतो. राजदरबारमां सुंदर
तत्त्वचचाृ थती हती त्यां जुनागढना उग्रसेन महाराजानादूत आवीने नेमकुंवर साथे
राजीमतिना विवाहनुं नककी करे छे. देशोदेशना राजाओ आवीने नेमकुमारने विविध
भेट घरे छे ने भावना भावे छे के–हे महाराज! जगतको सम्यक् रत्नत्रयकी भेट देने
वाले आपको हम कया भेट घरें? जैसे जगतमें सबसे श्रेष्ट ज्ञायकमहाराजाको मिलनेके
लिये सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप भेट देना पडती है, वैसे आप तीर्थंकर महाराजको
मिलकर प्रसन्नतासे हम यह भेट धर रहे है और भावना करते है कि आपके
समवसरणमें हमें सम्यक्त्तत्रयकी उत्तम भेट प्राप्त हो. ’
त्यारबाद नेमिकुंवरना विवाह माटे जान जुनागढ तरफ रवाना थाय छे. रथमां
नेमकुमार शोभी रह्या छे. शिवमाता होंशेहोंशे कुंवरने विदाय आपे छे ने बीजी तरफ
राजुलदेवी उत्सुकताथी नेमकुंवरनी वाटजोई रही छे....
वै. वद अमासे सवारमां दीक्षाकल्याणकनो प्रसंग रजु थयो.
दीक्षाकल्याणक प्रसंगे सारथी साथे नेमप्रभुनो संवाद
(नेमकुमारनी जान जुनागढ पहोंची छे; राजलदेवी नेमदर्शननी राह जोई रही
छे. एवामां एकाएक पांजरे पुरायेला पशुओनो करूण चित्कार सांभळता नेमकुमार
सारथिने कहे छे:–)
हे सारथी! रथने रोको.... रोको.... रोको.... पशुओनो आ करुणा चित्कार केम
संभळाय छे? आवा निर्दोष पशुओने अहीं कोण कोणे पूर्या छे? आवा मंगल प्रसंग
पर करुणतानो आ कोलाहल केम थई रह्यो छे? विवाह वखते वैराग्यनुं आ द्रश्य केम
उपस्थित थयुं?
सारथी:– महाराज! आबधुं आपना विवाहना उपलक्षमां ज थई रह्युं छे. जातना
रस्तामां आ निर्दोष पशुओने श्रीकृष्णे ज पुराव्या छे. आप जेवा करुणावंतने