Atmadharma magazine - Ank 344
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : जेठ : २४९८
देखीने आ पशुंडा छूटवा माटे चीस पाडी रह्या छे के हे प्रभो! अमने छोडावो,
छोडावो, छोडावो.
नेमकुमार:– अरे सारथि, सारथि! ए बधी वात जूठी छे. खरेखर आ पशुडा मारा
विवाह माटे नहि परंतु मने वैराग्य उपजाववा माटे ज श्रीकृष्णभैयाए अहीं
बंधाव्या छे. अरे, पृथ्वीना एक नाना टुकडा माटे आवो मायाचार! सारथि
वैराग्यनुं निमित्त उपस्थित करीने श्रीकृष्णे तो मारा उपर उपकार ज कर्यो छे; ने
मने विवाहना बंधनथी छोडाव्यो छे. सारथि! हवे रथने पाछो फरवो. हवे हुं
राजुल साथे विवाह करवा नथी ईच्छतो, हुं तो मुक्तिसुंदरी साथे विवाह करवा
माटे गीरनार जवा ईच्छुं छुं.
सारथी:– प्रभो, प्रभो! आप आ शुं कहो छो?
नेमकुमार: सारथि! हुं सत्य कहुं छुं. मारुं चित्त आ संसार उपरथी उठी गयुं छे. अने
संसारथी विरकत थईने हुं हवे आत्मसाधनाने पूरी करवा चाहुं छुं. रथनो पाछो
वाळो. हवे दिगंबरी मुनिदीक्षा धारण करीने हुं मुनि थवा मांगुं छुं, ने निर्विकल्प
शुद्धोपयोगमां लीन थवा मांगुं छुं.
सारथी:– प्रभो! आ बाजुं राजुलदेवी आपनी राह जोई रही छे, अने शौरीपुरमां
(द्वारकामां) शिवादेवीमाता आपने पोंखवा उत्सुक थई रह्या छे; त्यारे आप
कहो छो के मारे नथी परणवुं. प्रभो! शिवादेवी माताने हुं शो जवाब आपीश?
राजुलदेवी आ केम सहन करी शकशे? प्रभो! पाछा न फरो...... पाछा न फरो.
नेमकुमार:– अरे सारथि, मारो निर्णय अफर छे. मारो अवतार आ संसारना भोग
खातर नथी, पण आत्माना मोक्षने साधवा माटे मारो अवतार छे. अरे, आ
संसारनी स्थिति तो जुओ! एक पृथ्वीना टुकडा माटे भाई साथे मायाचार करवो
पडे! निर्दोष पशुओने पांजरे पूरवा पडे...... अरे, आ हिंसा शोभती नथी.
सारथी, आ पशुओने छोडी मूको.... एने मुक्त करो..... ने रथने पाछो वाळी
गीरनार तरफ लई जाओ अमारुं चित्त आ संसारथी विरकत छे. आ संसारना
मार्ग पर मारो रथ नहि चाले, मारो रथ हवे मोक्षना मार्ग पर चालशे.
मने लाग्यो संसार असार..... मने लाग्यो संसार असार.
ए रे संसारमां नहीं जाउं.... नहीं. जाउ..... नहीं जाउं रे.