Atmadharma magazine - Ank 344
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९८ आत्मधर्म : ९ :
मने लागे ज्ञायकभाव सार.... मने लागे चैतन्यपद सार....
ए रे ज्ञायकमां हुं लीन था.... लीन थाउं.... लीन थाउं रे.
सारथि:– प्रभो! प्रभो! धन्य छे आपनुं जीवन! आपना वैराग्यजीवनने हुं पहेलेथी जाणुं
छुं..... आप जगतथी उदास छो..... आप मात्र पशुओने नहि पण आपना
आत्माने आ संसारनां बंधनथी मुक्त करी रह्या छो. प्रभो! आप जे मार्गने
अंगीकार करी रह्या छो ते सत्य मार्ग छे. हुं पण आपना ज मार्गे आवीश. देवी
राजुल पण आपना ज मार्गे आवशे. शिवादेवी माता पण आपना ज मार्गे
आवशे, ने श्रीकृष्ण पण अंते आपना ज मार्गे आवीने मुक्ति पामशे. आपनो
मार्ग ए अनंत तीर्थंकरोनो मार्ग छे. जगतने पण ए मार्गे आव्ये ज कल्याण छे.
ए रीते नेमप्रभुए दीक्षानो निर्णय करतां वैराग्यमय मंगल वातावरण छवाई
जाय छे. अने लौकांतिकदेवो आवीने मंगल स्तुतिपूर्वक प्रभुना वैराग्यनुं
अनुमोदन करे छे–
१. प्रभो, आप मुनि होकर आत्माके ध्यानसे केवलज्ञानी बनेंगे और दिव्यध्वनिके द्धारा
मोक्षका मार्ग खोलेंगे; उसको पाकर जगतके जीव धन्य बनेंगे!
२. अहा, जगतथी विरकित ए ज अनंत तीर्थंकरोनो पंथ छे, आप पण ए ज मार्गे
जई रह्या छो...... जगत पण ए ज मार्गे आवशे.
३. अहा, प्रभो! आप जन्मथी ज वैरागी छो. ने आजे रत्नत्रयमार्गमां जई रह्या छो.
ते जगतने माटे कल्याणनुं कारण छे.
४. अहा प्रभो! आपको वीतरागी दिगंबर अवस्थामें देखकर हमें बहुत प्रसन्नता
होगी. आपकी आत्मा महान है; और मुनिदशा भी महान हौ
५. जीव मोहने करी दूर, आत्मस्वरूप सम्यक् पामीने,
जो राग–द्धेष परिहरे तो पामतो शुद्धात्मने. (८१)
नेमप्रभु आजे एवा उत्कृष्ट सुखना मार्गे जई रह्या छे, तेने अमारी अनुमोदना छे.
६. आत्मानो आनंद कहो, ज्ञानचेतना कहो, परम सामायिक कहो, निर्विकल्प अनुभूति
कहो, निर्ग्रंथी मार्ग कहो, ते मार्गे नेमप्रभु आजे जई रह्या छे. धन्य छे प्रभो!
आपनो वैराग्य! अमे तेने अनुमोदीए छीए.