७. अहा, जगतपूजय परमेष्ठीपद धारण करीने, चिदानंद स्वरूपमां झुलतां–झुलतां
संभळावशो.
साथ आपी शके ने प्रभु साथे संयम धारण करे ते प्रभुनी पालखीने पहेलांं उठावे. ए रीते
मनुष्यराजाओ पालखी लईने प्रथम सात पगलां चाले छे; पछी विधाधर राजाओ सात
पगलां चाले छे, ने छेल्ले ईंद्रो पालखी थईने दीक्षावनमां आवे छे.
जागती हती. दीक्षा पछी नेममुनिराजनुं पूजन थयुं. मुनिराजनी भक्ति थई; पण ए
पूजा–भक्ति वखते प्रभो तो निर्विकल्प ध्यानमां एकाग्र थईने सातमा गुणस्थानना
निर्विकल्प महा आनंदने अनुभवता हता, चोथुं ज्ञान तथा अनेक लब्धिओ तेमने
प्रगटी हती. पूजा–भक्तिमां एकाग्र भक्तजनोने खबर पण न पडी के नेममुनिराज
क््यारे क््यां विहार करी गया!
मुनिभक्ति चालु ज रही. बपोरे पचीस जेटला जिनबिंबो उपर अंकन्यास विधि थई.
महामुमुक्षुमंडळ द्धारा ठेरठेर धार्मिक प्रचार वृद्धिगत थई रह्यो छे. राजस्थान अने उत्तर
प्रदेशमां पण विशेष जागृती आवी रही छे. आ वखते आग्रामां शिक्षणशिबिरनुं मोटुं
आयोजन थयुं जेमां हजारो जिज्ञासुओए भाग लीधो हतो. सांजे वीतराग