Atmadharma magazine - Ank 344
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 15 of 55

background image
: १० : आत्मधर्म : जेठ : २४९८
७. अहा, जगतपूजय परमेष्ठीपद धारण करीने, चिदानंद स्वरूपमां झुलतां–झुलतां
आप गीरनार सहेसावनमां केवळज्ञान पामशो अने त्यांथी जगतने मोक्षनो संदेश
संभळावशो.
८. प्रभो! आप शुद्धोपयोगरूप मुनिदशाने अंगीकार करी रह्या छो. मुनिमार्ग अंतरमां
समाय छे; मुनिमार्ग ए कांई रागनो मार्ग नथी, ए तो वीतरागतानो मार्ग छे.
– ते मार्गने अमारी अनुमोदना छे.
लौकांतिकदेवोनी अनुमोदना बाद, ईंद्रो पालखी लईने आवे छे. प्रभुनी पालखीने
लेवानो पहेलो अधिकारर ईंद्रोनो नहि पण मनुष्योनो छे; प्रभुने ठेठ मुनिदशा सुधी जे
साथ आपी शके ने प्रभु साथे संयम धारण करे ते प्रभुनी पालखीने पहेलांं उठावे. ए रीते
मनुष्यराजाओ पालखी लईने प्रथम सात पगलां चाले छे; पछी विधाधर राजाओ सात
पगलां चाले छे, ने छेल्ले ईंद्रो पालखी थईने दीक्षावनमां आवे छे.
सुंदर दीक्षावगनमां आंबाना वृक्ष नीचे प्रभुना दीक्षाकल्याणकनी विधि थई ते
जोतां जाणे गीरनारना सहेसावननी वच्च ज बेठा होईए–एवी सुंदर भावनाओ
जागती हती. दीक्षा पछी नेममुनिराजनुं पूजन थयुं. मुनिराजनी भक्ति थई; पण ए
पूजा–भक्ति वखते प्रभो तो निर्विकल्प ध्यानमां एकाग्र थईने सातमा गुणस्थानना
निर्विकल्प महा आनंदने अनुभवता हता, चोथुं ज्ञान तथा अनेक लब्धिओ तेमने
प्रगटी हती. पूजा–भक्तिमां एकाग्र भक्तजनोने खबर पण न पडी के नेममुनिराज
क््यारे क््यां विहार करी गया!
दीक्षावनमां हजारो माणसोनी सभामां गुरुदेवे वैराग्यप्रवचन करीने मुनि
दशानो परम महिमा प्रसिद्ध कर्यो..... ए धन्य चारित्रदशानी भावना भावी. आखो दिवस
मुनिभक्ति चालु ज रही. बपोरे पचीस जेटला जिनबिंबो उपर अंकन्यास विधि थई.
बपोरे मध्यप्रदेश–मुमुक्षुमंडलनुं अधिवेशन शेठश्री भगवानदासजी (सागर) नी
अध्यक्षतामां थयुं; तत्त्वप्रचार माटे अनेक विचारो व्यक्त थया; मध्यप्रदेशना
महामुमुक्षुमंडळ द्धारा ठेरठेर धार्मिक प्रचार वृद्धिगत थई रह्यो छे. राजस्थान अने उत्तर
प्रदेशमां पण विशेष जागृती आवी रही छे. आ वखते आग्रामां शिक्षणशिबिरनुं मोटुं
आयोजन थयुं जेमां हजारो जिज्ञासुओए भाग लीधो हतो. सांजे वीतराग