Atmadharma magazine - Ank 344
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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सत्समागम एटले मुमुक्षुतानी पुष्टि
आत्मस्वभावनी आराधना ए मुमुक्षु ध्येय छे..... ते ध्येयनी
सफळता माटे आराधक धर्मात्माओनो सत्समागम करीने ते पोतानी
आत्मार्थिता पुष्ट करे छे.
एवा आराधक जीवोनो सत्समागम प्राप्त थवो बहु दुर्लभ छे
केमके जगतना जीवोमां आराधकजीवो अनंतमां भागना जछे. आम
छतां आत्माने साधवा माटे जागेला मुमुक्षुने कोईने कोई प्रकरे तेनो
मार्ग बतावनार ज्ञानी मळी ज जाय छे.
‘सत्समागम’ एटले, रागादिथी भिन्न ज्ञानचेतनारूपे
परिणमेला ज्ञानीने ओळखीने तेनो समागम; ज्ञानीना ज्ञानभावोनी
ओळखाण थतां मुमुक्षुना परिणमवा आत्मस्वभाव तरफ झूके छे, तेनी
आ आत्मार्थीता पुष्ट थाय छे ने रागनो रस तूटतो जाय छे. एम थतां,
कदी नहि अनुभवायेली एवी कोई अपूर्व शांतिना भावो तेने पोतामां
जागे छे. ज्ञानीना साचा सत्समागमनुं आवुं फळ जरूर आवे ज छे.
हे बंधु, आवा मोंघा सत्समागमनी प्राप्तिनो अने आत्मार्थनी
पुष्टि करीने शांतिना वेदननो आ सोनेरी अवसर छे. हवे तारुं काम
एक ज छे के बीजा बधामांथी रस छोडीने, समये–समये स्वनी रागथी
जुदा करीने, बधा प्रकारथी आत्मवस्तुनो महिमा घूंटीघूटीने, रागथी
जुदा चैतन्यभावनुं अंतरमां वेदन करवुं. हवे तुं एना ज प्रयत्नमां ऊंडो
ऊंतर..... बस! तारो बेडो पार छे...... शांति अपार छे.