आत्मार्थिता पुष्ट करे छे.
छतां आत्माने साधवा माटे जागेला मुमुक्षुने कोईने कोई प्रकरे तेनो
मार्ग बतावनार ज्ञानी मळी ज जाय छे.
ओळखाण थतां मुमुक्षुना परिणमवा आत्मस्वभाव तरफ झूके छे, तेनी
आ आत्मार्थीता पुष्ट थाय छे ने रागनो रस तूटतो जाय छे. एम थतां,
कदी नहि अनुभवायेली एवी कोई अपूर्व शांतिना भावो तेने पोतामां
जागे छे. ज्ञानीना साचा सत्समागमनुं आवुं फळ जरूर आवे ज छे.
एक ज छे के बीजा बधामांथी रस छोडीने, समये–समये स्वनी रागथी
जुदा करीने, बधा प्रकारथी आत्मवस्तुनो महिमा घूंटीघूटीने, रागथी
जुदा चैतन्यभावनुं अंतरमां वेदन करवुं. हवे तुं एना ज प्रयत्नमां ऊंडो
ऊंतर..... बस! तारो बेडो पार छे...... शांति अपार छे.