Atmadharma magazine - Ank 344
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९८ आत्मधर्म : ३५ :
समन्तभुद्रमुनिराजना शरीरमां भस्मक रोगथी क्षुधावेदना थई, छतां एवा दुःखमां
पण ते मुनिराज जराय न डग्या, तेमणे तो निजगुणनुं चिंतन कर्युं. हे भाई! आवो
उपसर्ग पण स्थिरतापूर्वक सहन करीने तेमणे चित्तमां आराधना धारण करी; तो तारुं दुःख
शुं हिसाबमां छे? मृत्युनु महोत्सव समजीने तुं पण तारुं चित्त आराधनामां जोड.
(३७) ललितघटादिक तीस–दोय मुनि, कोसाम्बी तट जानो,
नदीमें मुनि बहार मूवे, सो दुख उन नहिं मानो.
यह उपसर्ग सह्यो घर थिरता, आराधना चित्त धारी,
तौ तुमरे जिय कौन दुःख है, मृत्यु–महोत्सव भारी.
ललितघट वगेरे ३० मुनिवरो कौशाम्बी नगरीमां नदीकिनार ध्यानमां हता त्यां
पाणीना प्रवाहमां तणाईने मरण पाम्या, छतां तेओए दुःख न मान्युं. स्थिरता पूर्वक
ते उपसर्ग सहन करीने चित्तमां आराधना धारण करी; तो हे जीव! आ मृत्युना
महोत्सवमां तने शुं दुःख छे?
(३८) धर्मघोष मुनि चम्पानगरी बाह्य ध्यान घर ठाढो,
एक मासकी कर मर्यादा, तृषा–दुःख सह गाढो.
यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधना चित्त धारी,
तौ तुमरे जिय कौन दुःख है, मृत्यु महोत्सव भारी.
धर्मघोषमुनिए चंपानगरीना उधानमां एक मासना अनशनपूर्वक द्रढ ध्यान
धारण कर्युं ने घोर तृषादुःख सुहन कर्युं.; आवो उपसर्ग स्थिरतापूर्वक सहन करीने तेओ
आराधनामां अडग रह्या; तो हे जीव! तने शुं दुःख छे! मृत्यु–महोत्सव टाणे तुं
आराधनामां द्रढ रहे.
(३९) श्रीदत्त मुनिको पूर्वे जन्मका, वैरी देव सु आके,
विक्रिय कर दूर शीत–तनो जो, सह्यो साधु मन लाके.
यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधना चित्त धारी,
तौ तुमरे जिय कौन दुःख है, मृत्यु–महोत्सव भारी.
पूर्वजन्मना वेरी देवे विक्रिया वडे श्रीदत्तुमुनिने शीतनो उपसर्ग कर्यो; पण
मुनिओ स्थिरता धारण करीने ते उपसर्ग सह्यो ने आराधनाथी नडग्या; तो हे जीव!
तने तो शुं दुःख छे? मृत्युने तो महोत्सव तुं आराधना कर.