Atmadharma magazine - Ank 344
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : जेठ : २४९८
(३३) देखो गजमुनिके सिर उपर, विप्र अग्नि बहु मारी,
सीस जलै जिम लडकी तिनको, तो हूं नाहिं चिगारी.
यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधना चित्त धारी,
तो तुमरे जिय कौन दुःख है मृत्यु–महोत्सव भरी.
जुओ, आ गजकुमार मुनिना मस्तक उपर ब्राह्मणे मोटो अग्नि सळगाव्यो.
तेमनुं माथुं लाकडानी जेम सळगवा लाग्युं, तोपण तेमणे ऊंकारोय न क््यो; आवो
उपसर्ग स्थिरतापूर्वक तेमणे सहन कर्यो.
(३४) सनतकुमार मुनिके तनमें, कुष्टवेदना व्यापी,
छिन्न–भिन्न तन तासों हूवो, तब चिन्त्यो गुन आपी.
यह उपसर्ग सह्यो घर थिरता, आराधना चित्त धारी,
तौ तुमरे जिय कौन दुःख है, मृत्यु–महोत्सव भारी.
सनतकुमार मुनिना शरीरमां तीव्र कोढ वगेरे रोग थया, अने तेना वडे शरीर
छिन्न–भिन्न थई गयुं. पण त्यारे तेमणे शुं कर्युं तेमणे तो आत्माना गुणोनुं चिंतन कर्युं,
अने स्थिरतापूर्वक ए उपसर्ग सहन करीने चित्तमां आराधनाने धारण करी. तो अरे
जीव! तने शुं दुःखछे? मृत्युने महोत्सव समजीने तुं चित्तमां आराधनाने धारण कर.
(३प) श्रेणिकन्सुत गंगा में डूब्यो, तब ‘जिन’ नाम उतारो,
धर संलेखना परिग्रह छोडयौ, शुद्धभाव उर धारो.
यह उपसर्ग सह्यो घर थिरता, आराधना चित्त धारी,
तौ तुमरे जिय कौन दुःख है, मृत्यु महोत्सव भारी.
श्रेणिकपुत्र ज्यारे गंगामां डूब्यो त्यारे तेणे जिनेदेवनुं चिंतन कर्युंफ संबोधन
धारण करीने परिग्रह छोड्यो ने अंतरमां शुद्धभाव प्रगट कर्यो. ए रीते स्थिरता पूर्वक
उपसर्ग सहन करीने चित्तमां आराधना धारण करी. तो हे जीव! तने शुं दुःख छे?
(३६) समंतभद्र मुनिवरके तनमें, क्षुधा–वेदना आई,
ता दुःखमें मुनिनेक डिगियो, चिंत्यो निज गुज भाई.
यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधना चित्त धारी.
तौ तुमरे जिय कौन दुःख है, मृत्यु –महोत्सव भारी.