Atmadharma magazine - Ank 344
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९८ आत्मधर्म : ३७ :
चिलातीपुत्र नामना मुनिनुं शरीर वेरीए घात्युं, तेमां मोटा मोटा कोडा पड्या,
छतां मुनि तो निजगुणमां ज राची रह्या. आवो उपसर्ग तेमणे स्थिरचित्ते सहन कर्यो,
तो अरे जीव! तने शुं दुःख छे? मृत्यु–महोत्सव टाणे तुं पण उत्साहथी चित्तने
आराधनामांजोड.
(४४) दंडक नामा मुनिको देही, बाणन कर अरि भेदी,
ता पर नेक डिगे नहिं वे मुनि, कर्म–महारिपु छेदी.
यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित्त धारी,
तौ तुमरे जिय कौन दुःख है, मृत्यु महोत्सव भारी.
दंडकनामना मुनिनो देह दुश्मने बाणो जडे भेद नांख्यो, तोपण मुनि रंचमात्र न
डग्या, ने तेमणे कर्ममहाररिपुने छेदी नांख्यो. स्थिरचित्ते तेमणे आवो उपसर्ग सह्यो ने
आराधनामां द्रढ रह्या; तो हे जीव! तने शुं दुःख छे? तुं पण मृत्यु महोत्सवमां
उत्साहथी आराधना कर.
(४प) अभिनन्दन मुनि आदि पांचसौ, घानी पेलि जु मारे,
तै भी श्रीमुनि समता धारी, पूरव कर्म विचारे.
यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधना चित्त धारी,
तौ तुमरेीजय कौन दुःख है, मृत्यु–महोत्सव भारी.
अभिनंदन वगेरे पांचसोमुनिओने घाणीमां पीली नांख्या, तोपण ते मुनिओए
पूर्वकर्मनुं फळ समजीने समता धारण करी. आवो उपसर्ग स्थिरतापूर्वक सह्यो ने
आराधनामां अडोल रह्या. तो हे जीव! तने शुं दुःख छे? मृत्यु तोमहोत्सव छे एम
समजी तुं आराधनामां चित्त जोड.
(४६) चाणक मुनि गौधरके मांही, मूंद अगिनि परजाल्यो,
श्रीगुरु उर सम–भाव धारके, अपनो रूप सम्हल्यो.
यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधना चित्त धारी,
तौ तुमरे जिय कौन दुःख है, मृत्यु–महोत्सव भारी.
गौशाळामां स्थित चाणकय थईने कोई दुष्टे अग्निमां बाळी नांख्या, पण
श्रीगुरुए तो अंतरमां समभाव धारण करीने पोतानुं स्वरूप संभाळ्‌युं; चित्तमां
आराधना धारण करीने स्थिरचित्ते ते उपसर्ग सह्यो; तो हे जीव! तने शुं दुःख छे?
मृत्यु–महोत्सव टाणे तारुं चित्त आराधनामां जोड.