Atmadharma magazine - Ank 344
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९८ आत्मधर्म : ५ :
आ जड रत्नो कोण ल्ये? जगतना जीवो तो मारा पुत्र पासेथी सम्यग्दर्शनादि
रत्नो ग्रहण करशे.
देवीओ आनंदथी कहे छे–“धन्य रत्नकूंखधारिणी माता! तमारो जय होय...... तमारा
पुत्रनो जय हो”
आ प्रमाणे आत्महितनी चर्चासहित आनंद–मंगलपूर्वक दिवसो वीती रह्या छे.
हवे प्र. वै वद १४ नी सवारमां ईन्द्रसभामां एकाएक मंगलचिह्नो प्रगट थतां
नेमिनाथ तीर्थंकरना जन्मनी खबर पडी, ईन्द्रोए आनंदमंगल व्यक्त कर्यां. भगवान
जन्म वखते चारेकोर आनंदनो कोलाहल फेलाई रह्यो हतो. सौधर्म ईन्द्र अने
शचीईन्द्राणी ऐरावत उपर आवीने द्वारीकानगरीनी (प्रतिष्ठामंडपनी) प्रदक्षिणा करवा
लाग्या.
आ बाजु द्वारिकानगरीमां पण समुद्रविजय महाराजनो राजदरबार भरायो छे
ने आनंदमय धर्मचर्चा चाली रही छे. एवामां एकाएक तीर्थंकर भगवानना जन्मनी
मंगल वधाई आवे छे ने चारेकोर हर्ष छवाई जाय छे......
ईन्द्र एरावत हाथी लईने आवी पहोंच्या; शचीदेवी भगवान बालतीर्थं करने
तेडी लाव्या. ने ईन्द्रने आप्या. भगवानने गोदीमां लईने ईन्द्र–ईन्द्राणी धन्य बन्या.....
ने प्रभुनी सवारी मेरूपर्वत तरफ चाली. फत्तेपुर जेवा नाना धूळिया गाममां बाल
तीर्थंकरनी आवडी मोटी सवारी–हाथी–घोडा–गाडी–रथ ए बधुं केम समाय? गाम नानुं
ने सवारी मोटी! पण, ना; आजे फत्तेपुर न हतुं, ए तो आजे सोनानुं महान
द्वारकानगर बनी गयुं हतुं. हजारो नगरजनोने हर्ष पमाडती ने आर्श्चयमां डुबाडती ए
सवारी मेरु पासे आवी पहोंची. दश हजारथी वधु लोको प्रभुनो जन्माभिषेक जोवा
आतुर बन्या हता. खुल्ला मेदानमां धोमधखता तडका नीचे ऊभा हता ने! एटले
प्रभुनी मंगलछायामां आताप केवो? जेमनी छायामां संसारनो आताप पण मटी जाय
ने चैतन्यनी अपूर्व शीतळता मळे, त्यां आ सूर्यना आतापने कोण गणकारे?
जन्माभिषेकनी उमंगभरी भक्तिमां सौ मशगुल हता. आनंद उल्लास पूर्वक
जन्माभिषेक करी, ईन्द्राणीए स्वर्गनां देवी अभूषणोथी बालप्रभुने शणगर्या अने नाम
राख्युं नेमिकुमार.