: ४ : आत्मधर्म : जेठ : २४९८
माता उपर आपे छे–हे देवी! पोते पोताना स्वसंवेदनथी आत्माने तेनी खबर पड छे
जेम थांभलो नजरे देखाय छे तेम अनुभूतिमां आत्मा तेनाथी पण वधु स्पष्ट
जणाय छे.
चोथी देवी पूछे छे–हे माता! आंख वडे थांभलो जणाय तेना करतांय आत्माना ज्ञानने
वधु स्पष्ट केम कह्युं?
माता जवाब आपे छे–हे देवी! थांभलानुं ज्ञान तो ईद्रिंयज्ञान छे, ते परोक्ष छे, ने
आत्माने जाणनारुं ज्ञान तो अतीन्द्रिय छे अने प्रत्यक्ष छे, माटे ते वधारे स्पष्ट छे.
पांचमी देवी पूछे छे के–अनुभूति वखते तो मति–श्रुतज्ञान छे छतां तेने प्रत्यक्ष अने
अतीन्द्रिय केम कह्या?
माताजी जवाब आपे छे–केमके अनुभूति वखते उपयोग आत्मामां एवो लीन थयो छे
के तेमां ईंद्रियनुं के मननुं अवलंबन छूटी गयुं, तेथी ते वखते प्रत्यक्षपणुं छे.
‘अहा, ए वखतना अद्भूत निर्विकल्प आनंदनी शी वात! ’
छठ्ठी देवी कहे छे के–हे माता! तमे अनुभूतिनी अद्भूत वात समजावी. आजे तो जाणे
तमारा अंतरमांथी कोई अलौकिक चैतन्यरस झरी रह्यो छे!
माता कहे छे–देवी! अंतरमां बिराजमान तीर्थंकरना आत्मानो ए प्रताप छे. प्रभु
पधार्या त्यारथी मारा आत्मप्रदेशोमां अतीन्द्रिय आनंदरस छवाई गयो छे.
सातमी देवी कहे छे के– अहा माता! अमने तो लागे छे के पंदर मास आपीने सेवा
करतां–करतां अमने पण अनुभूतिनो महान लाभ थशे. आपना पुत्रने देखीने
अने गोदमां लईने अमे धन्य बनशुं.
माता कहे छे–हा देवीओ! जगतना जीवोने अनुभूतिनो मार्ग बताववा माटे ज मारा
पुत्रनो अवतार छे. तमे पण महा भाग्यशाळी छो के तीर्थंकरनी सेवा करवानो
अवसर प्राप्त थयो छे.
आठमी देवी पूछे छे– हे मा! छ–छ मासथी अहीं राजमहेलमां करोडो रत्नो वरसी रह्या
छे, रस्तामां ए रत्नोनां ढगला पड्या छे, छतां कोई तेने लेतुं केम नथी?
माता कहे छे–देवी! ए रत्नो तो जड छे. मारो पुत्र जन्मीने जगतने सम्यग्दर्शन ज्ञान
चारित्रनां चैतन्यरत्नो आपवानो छे. तो ए अलौकिक चैतन्यरत्नो छोडीने