Atmadharma magazine - Ank 344
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९८ आत्मधर्म : ३ :
फत्तेपुरमां समाचार
(लेखांक: २)
फत्तेपुर (गुजरातमां) गत प्रथम वैशाख वद ४ थी द्धि. वै.
सुद ४ सुधी पंचकल्याणक–प्रतिष्ठा वगेरेनो जे भव्य महोत्सव
उजवायो–तेना प्रारंभिक समाचार आपे गतांकमां वाच्या. बाकीनां
समाचारो अहीं रजुं थाय छे. गतांकना समाचारो, प्रवचनो तेम ज
८३ पुष्पोनी मंगळमाळा वगेरे वांचीने घणा जिज्ञासुओए
प्रसन्नता व्यक्त करी छे. आ अंक वांचीने पण सौने प्रसन्नता थशे.
फत्तेपुरमां–स्वागत; शिक्षण शिबिर, प्रतिष्ठा–मंडत वीतराग–विज्ञान नगरीनी
शोभा, फत्तेपुरमां वर्णन, प्रवचनसभानुं गौरव, गर्भकल्याणक वखतनी चर्चा वगेरेनुं
वर्णन आपणे गतांकमां वांच्युं. आ नेमप्रभुना पंचकल्याणक चाली रह्या छे.
दिग्कुमारीदेवीओ शिवादेवी मातानी सेवा करे छे, ने तेमनी साथे तत्त्वचर्चा पण करे छे.
केवी मजानी हशे तीर्थंकरनी जनेता साथेनी ए धर्मचर्चा! चालो पाठक! तमने पण तेनुं
रसास्वादन करावुं:–
एक देवी पूछे छे : हे माता! अनुभूतिस्वरूप थयेलो आत्मा तमारा अंतरमां बिराजे
छे, तो एवी अनुभूति केम थाय? ते समजावो.
माता जवाब आपे छे–हे देवी! अनुभूतिनो महिमा घणो गंभीर छे. आत्मा पोते
ज्ञाननी अनुभूतिस्वरूप छे. ते ज्ञाननी अनुभूतिमां रागनी अनुभूति नथी;
आवुं भेदज्ञान थाय त्यारे अपूर्व अनुभूति प्रगटे छे.
बीजी देवी पूछे छे के हे माता! आत्मानी अनुभूति थतां शुं थाय!
माता कहे छे–सांभळ, देवी! अनुभूति थतां आखो आत्मा पोते पोतामां ठरी जाय छे.
एमा अनंतगुणना चैतन्यरसनुं एवुं गंभीर वेदन थाय छे के जेना महान
आनंदने आत्मा ज जाणे छे. ए वेदन वाणीमां आवतुं नथी.
त्रीजी देवी पूछे छे–माता! वाणीमां आव्या वगर ए वेदननी खबर केम पडे?