Atmadharma magazine - Ank 345
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ: २४९८ आत्मधर्म : ३:
* अनुभवरस–घोलन *
[वांकानेरथी तत्त्वचर्चामांथी]
आप अनुभवनी वात करो छो ते अमने बहु ज गमे छे, पण आवो अनुभव केम
करवो?
विकल्पथी ज्ञानने जुदुं ओळखवानो अभ्यास करवो; ज्ञाननी महानता छे, ज्ञान
अनंता चैतन्यभावोथी भरेलुं छे, ने रागविकल्पो तो चैतन्यथी शून्य छे–एम भेदज्ञान
करतां अनुभव थाय छे.
छठ्ठा गुणस्थानना शुभविकल्पनेय प्रमाद कह्यो छे, तो ते शुभविकल्प ज्ञाननी जात केम
होय? अग्निनो कण भले नानो होय पण ते कांई बरफनी जात तो न ज कहेवायने?
तेम कषायअंश पण शुभ होय पण ते कांई अकषाय–शांतिनी जात तो न ज
कहेवायने? विकल्पने अने ज्ञाननी जात ज जुदी छे. आवुं जुदापणुं नक्की करवुं ते
ज्ञानस्वभावना अनुभवनुं कारण छे.
राग पोते दुःख छे, के तेमां एकत्वबुद्धि ते दुःख छे?
राग पोते दुःख छे, तेथी तेमां एकत्वबुद्धि ते दुःख ज छे. दुःखना भावमां जेने
एकत्व भासे (एटले के तेमां पोतापणुं भासे) ते दुःखथी केम छूटे?
–अने तेनी सामे, रागथी भिन्न आनंदस्वभावी आत्मा पोते सुखरूप छे, ने
तेथी तेमां एकत्वपरिणति ते पण सुख छे.
खरो महिमा आवतो नथी, ने रागनो महिमा छूटतो नथी. अंतरनुं आनंदतत्त्व–के जे
रागथी पार छे तेने गंभीर महिमा जो बरांबर जाणे तो तेमां ज्ञान वळ्‌या वगर रहे
नहि. अचित्य अद्भुत स्वतत्त्वनुं ज्ञान थतां ज परिणाम झडपथी तेमां वळी जाय छे,
–क्षणभेद नथी. ज्यां ज्ञान अंतरमां वळ्‌युं त्यां बीजा अनंतगुणो पण पोतपोताना
निर्मळभावपणे खीली ऊठया, ने अंनत–गुणना वीतरागी चैतन्यरसनो अचिंत्य
स्वाद आव्यो.–आनुं नाम सम्यग्दर्शन.
सम्यक्त्वनी तैयारीवाळा जीवने सम्यक्त्वनी पूर्वभूमिकामां केवा विकल्प होय? प्रथम
तो ते जीवे पोताना ज्ञानस्वभावनो महिमा लक्षमां लीधो छे, तेने ते स्वभाव तरफ
ढळता विचारो होय छे. कोई अमुक ज प्रकारनो विचार के विकल्प