Atmadharma magazine - Ank 345
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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:४: आत्मधर्म : अषाढ: २४९८
होय–एवो नियम नथी; पण समुच्चयपणे विकल्पनो रस तूटे ने चैतन्यनो रस
घूंटाय...एटले परिणति स्वभाव तरफ उल्लसती जाय–एवा ज परिणाम होय. कोईने हुं
ज्ञायक छुं एवा विचार होय, कोईने सिद्ध जेवुं आत्मस्वरूप छे एवा विचार होय,
कोईने आत्माना अतीन्द्रिय आनंदना विचार होय, कोईने ज्ञान अने रागने
भिन्नताना विचार होय, कोईनी आत्मानी अनंत शक्तिना विचार होय–एम कोई पण
पडखेथी पोताना स्वभाव तरफ झुकवाना विचार होय.
–पछी ज्यारे अंतरनी कोई अद्भुत उग्र धाराथी स्वभाव तरफ ऊपडे छे त्यारे
विकल्पो शांत थवा मांडे छे ने चैतन्यरस घूंटातो जाय छे,–ते वखते विशुद्धताना अति
सूक्ष्म परिणामोनी धारावडे अंतरमां ‘त्रण करण’ थई जाय छे, ए त्रण करणना काळे
जीवना परिणाम स्वरूपना चिंतनमां वधुने वधु मग्न थता जाय छे, ने पछी तो झडपथी
बीजी ज क्षणे निर्विकल्प विज्ञानघन थईने परम शांत अनुभूति वडे जीव पोते पोताने
साक्षात् अनुभवे छे. आ सम्यक्त्वनी विधि छे.
पहेलांं आत्माना स्वभावने लगता अनेक प्रकारना विचार होय, तेना वडे
स्वभावमहिमाने पुष्ट करतो जाय.–पण ते वखते तेने स्वभावने पकडवा माटेना
ज्ञाननी महत्ता छे, ते ज्ञान विकल्पथी आघुं खसीने स्वभाव तरफ अंदर ढळे छे. त्यां
कांई ‘हुं शुद्ध’ वगेरे जे विकल्पो छे ते अनुभव तरफ झुकवानुं कारण नथी, ज्ञान ज
विकल्पथी अधिक थईने (जुदुं थईने) अनुभव करे छे.
प्रश्न:– आत्मा परने करतो नथी तेम पोतानी पर्यायने पण करतो नथी,–ए खरू?
उत्तर:– ना; एम नथी. आत्मा पोते कर्ता थईने पोतानी सम्यक्त्वादि परिणति करे छे,
एवो तेनो कर्तास्वभाव छे. अनुभवमां विकल्प वगर एवी निर्मळ पर्याय थई जाय छे
तेनो कर्ता आत्मा छे. हा, ते अनुभव टाणे ‘हुं निर्मळपर्यायने करुं’ एवो विकल्प नथी,
पण पोते परिणमीने निर्मळपर्यायरूप थाय छे. ते निर्मळपर्यायना कर्तापणे
विकल्परहित ते आत्मा परिणमे छे. विकल्प वगर पण पोतानी शुद्धपर्यायना कर्ता–कर्म–
करण वगेरे छ कारणरूप परिणमवानो जीवनो स्वभाव छे; ते परिणमन जीवनुं पोतानुं
छे. जेम आत्मा परने न करे अने विकल्पने न करे तेम, आत्मा पोतानी
ज्ञानादिपर्यायने पण न करे–एम कांई कहेतां नथी, पण ‘हुं कर्ता ने पर्यायने करुं’ एवा
भेदना विकल्पने करवानुं आत्माना स्वभावमां नथी–एम समजवुं.