Atmadharma magazine - Ank 345
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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:६: आत्मधर्म : अषाढ: २४९८
विचार करवानी वात छे. ते लोकोनुं सुख कई श्रेणीनुं छे! आजनो उपवास कया प्रकारनो
छे? एटलुं ज नहि, पण पतिपत्नी एक साथे रहेवा छतां पण जरा मनमां विकल्पनो अंश नथी,
तेने ज असली तप कहे छे. लोकमां स्त्री अने पुरुष अलग रहीने पोतानुं ब्रह्मचर्य व्रत बतावी
शके, परंतु एक साथे रहीने पण मनमां कोई पण प्रकारनो विकार उत्पन्न न थवा देवो ते
तलवारनी धार उपर चालवा जेवुं छे. एवा पण घणा जोवामां आवे छे जे पहेलांं व्रत तो लई
ले छे पछी स्त्रीओने जोतां विचलित थाय छे. अने मात्र लोकोना भयथी कोई रीते रोकाई रहे
छे. कोई कोई भरी सभामां व्रत ले छे, पछी सुंदर स्त्रीओने जोईने मनमां ने मनमां काशी–
फलनी जेम सडे छे. शुं ते व्रत छे के आडबंर छे?
व्रत ने संयम लीधा पछी तेने सर्प समान अत्यंत मजबूतीथी ग्रही राखवा जोईए.
कदाचित् हाथने ढीला करे तो जेम ते सर्प करडीने पोतानो सर्वनाश करे छे तेम व्रतमां शिथिलता
पण सर्वनो नाश करे छे. जे वखते कोई पदार्थने आपणे भोगवीए छीए ते वखते तेने भोगवी
लेवो जोईए, जे वखते तेनो त्याग करीए त्यार पछी तेनुं स्मरण पण न करवुं जोईए. एटलुं
ज नहि, तेनी हवा पण न लागवी जोईए. ए प्रकारनी चतुरता राखवी जोईए. एकवार
स्त्रीत्याग कर्या पछी ते स्त्री आवीने आलिंगन करे तोपण पोताना हृदयमां कोई विकार न थवा
देवो ते असली ब्रह्मचर्य छे. सामे स्त्रीओ जोतां मन गळी जवुं ते नकली ब्रह्मचर्य छे.
जेना हृदयमां द्रढता छे, भावमां शुद्धि छे ते स्त्रीओ साथे बोले तोपण ते निर्लेप छे.
तेमनी तरफ जुए तो ये शुं? हसे तो ये शुं? एटलुं ज नहि, स्पर्शे तो पण शुं? तेमना मनमां
जरा पण विकार थतो नथी. शुं पाणीना स्पर्शथी कमळना पांदडा भींजाय छे? ए प्रकारे
स्त्रीओनां संबंधमां निर्बल हृदयवाळा विकारी बने छे, पण धीरोना हृदयमां तेनो कोई प्रभाव
नथी पडतो.
राजा भरत ने तेनी स्त्रीओ व्रतशूर हता. चित्तने पोताने वश करवामां तेओ प्रवीण हता
तेथी ते दिवस घोर ब्रह्मचर्यव्रत लईने चित्त जरापण ढीलुं कर्या विना पोताना व्रतमां द्रढ हता,
तेथी तेमने धर्मवीर कहेवा जोईए. खरी रीते जोवामां आवे तो साचुं पण ए ज छे. लोकमां जे
चोरीथी भोजन करे छे तेने जो कोईए वच्चे ज रोक््यो तो मनमां घणो दुःखी थाय छे. कोई
मनुष्यनुं पेट पूर्णरूपे न भराय तो तेने खावानी आकुळता रहे छे, परंतु आ लोकोने सुखनी शी
खामी छे? अत्यंत तृप्त थईने सुख प्रतिदिन भोगववावाळाए जो एक दिवस तेमनो परित्याग
कर्यो तो