Atmadharma magazine - Ank 347
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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भादरवो : २४९८ : आत्मधर्म : १५ :
भवना अंतने माटे साधक संत एम कहे छे के तारा परमात्मतत्त्वमां अंतर्मुख परिणति
कर..... तेमां भव नथी. धर्मीनी परिणति भवना वनथी बहार नीकळी गई छे.
अरेरे, आ भव अने शरीरना बोजा धारण करवा ते तो जीवने कलंक छे. तेनाथी जुदो पडीने
धर्मी जीव चैतन्यपरिणतिरूपे धारावाही परिणमे छे, ते भव–कलंकथी छूटयो छे, ने
मोक्षमार्गमां शोभे छे.
अहो, आत्मचीज अंतरमां प्रगट्या वगर जीवने शांति के धर्म क््यांथी थाय?
आत्मा अनंत आनंदधाम भगवान अंदर बिराजे छे, तेने देखो; बहारथी शरीरने न देखो,
रागने न देखो. ते बधाथी पार चैतन्यने अंदर देखो.
आवा चैतन्य एकदम अंतर्मुख थईने उत्साहथी तेनी आराधना तमे करो....ने बीजाने पण
तेनी आराधना करवानुं कहो....अनुमोदो.–ए ज खरूं जीवन छे.
अहो, आवा चैतन्यनी आराधना....तेनाथी ऊंचु आ जगतमां कांई नथी. आवी आराधना
ए ज भगवंतोनी कृपा अने प्रसन्नता छे.
धर्मीने असंख्य प्रदेशमां आराधनानी एवी प्रसन्नता छे के बहारमां क््यांय चेन पडतुं नथी.
ते अंदरनो उद्यमी छे ने बहारनो आळसी छे.
धर्मीने पोताना अंतरमां चैतन्यनी आनंदमय रिद्धि–सिद्धि सदाय वृद्धिगत छे; ते
परमात्मानो दास ने जगतथी उदास छे.–आवा धर्मात्मा अंतरना लक्षवडे सदाय सुखिया छे.
अरे जीव! तारो उत्साह क््यां काम करे छे! चैतन्यमां तारो उत्साह काम करे छे, के रागमां
तारो उत्साह काम कर छे? बहारनो तारो उत्साह तने चैतन्यनी अंदर केम वळवा देशे?
पोताना चैतन्यना अचिंत्य महिमा प्रत्येना उल्लासमां धर्मीने रागना कोई अंशनो उत्साह
नथी; तेनाथी तो तेनी चेतना उदास छे–ए धर्मीनुं लक्षण छे.
हे भाई, आनंदना वेदनसहित आत्मानुं आराधन कर, तेमां ज तारा स्वकार्यनी सिद्धि छे.
ए सिवायना बीजा बधा कार्योने तो धर्मीजीव अकार्य समजे छे.
शांत–चैतन्यरसथी भरेल तारी निर्मळ पर्यायरूपी कळशवडे तुं तारा आत्मानो अभिषेक
करीने परभावरूपी मेलने धोई नांख.