आपणने सौने आत्महितनुं जे मार्गदर्शन अने प्रेरणा मळे छे ते
अलौकिक छे. वीतरागमार्गनी शरूआत आपणा आत्मामांथी ज थाय
छे,–एवो आत्मसन्मुखी वीतरागमार्ग आपीने गुरुदेवे अपूर्व उपकार
कर्यो छे. अहा, विदेहमां सदाय वहेतो धर्मप्रवाह गुरुप्रतापे आजे
आपणने अहीं भरतक्षेत्रमां पण मळी रह्यो छे. तो पछी ओलो
चोथाकाळ अने पंचमकाळ तेमां शो फेर छे? ने अहीं पण धर्मप्राप्ति
थती होय तो भरतमां ने विदेहमां शो फेर छे.?
उत्तम कार्यमां वार शा माटे लगाडवी? अत्यंत जागृत थईने आत्मानी
आराधनामां तत्पर थाओ.....दीवाळी आवतां पहेलांं आत्मामां
चैतन्यना अनंत सम्यक् दीवडा प्रगटावो ने आत्मामां मोक्षनी
मंगलदीपावली आनंदथी ऊजवो.
करतां तारी पर्यायमां अनादिनो दुकाळ टळीने सम्यक्त्वादि आनंदना
मीठा पाक पाकशे, धर्मना लीलाछम अंकूरथी आत्मा शोभी ऊठशे....ने
अंदरथी रणकार ऊठशे के