साद पडी चूक््यो छे.... केवळज्ञान आवी रह्युं छे.
केवळीभगवाननी पासेथी जे वाणी आवी छे, अने
आगळ वधतां वधतां जे केवळज्ञाननी समीप पहोंचीने ‘दिव्य’
स्वरूप धारण करवानी छे–एवी वीतरागवाणीनो नमूनो आ
आत्मधर्ममां पीरसाय छे. खरेखर, गुरुदेवे आ वीतरागवाणी
आपीने आपणने चैतन्यस्वाद चखाडयो छे. ए गुरुदेवना
महिमानुं , एमना उपकारनुं, वर्णन कई रीते करवुं!!!
ए तो आपणे सौ जाणीए छीए के आपणा गुरुदेवे
जोरदार श्रुतवडे केवळज्ञानने साद पाडी दीधो छे, अने ए
अतीन्द्रिय साद सांभळीने केवळज्ञान नजीक–नजीक आवी
ज रह्युं छे.... त्रण भव पछी तो ए साक्षात् आवी
पहोंचशे....त्यारना महोत्सवनी तो शी वात! अत्यारे पण,
ए केवळज्ञानलक्ष्मीना स्वंयवरमंडपमां आपणे रोज रोज
मंगल–उत्सव वर्ते छे... रोजरोज मीठा–मधुर चैतन्यरसनुं
पान गुरुदेव आपणने करावी रह्या छे... केवळज्ञान जेम
जेम नजीक आवी रह्युं छे तेम तेम अहीं आनंदमय
चैतन्यरसना कसुंबा वधुने वधु घोळता जाय छे...ने
आपणने पण एनी वधु ने वधु प्रसादी मलती जाय छे.
अहा! ए चैतन्यरस चाखतां तेनी खुमारीथी
अस्रख्यप्रदेशमां एवी झणझणाटी थाय छे के....गुरुदेवना
केवळज्ञाननी साथे साथे आपणुंय केवळज्ञान नजीकनजीक
आवी रह्युं छे....साद पडी चूक््यो छे...आगमननी
मंगलवधाई आवी चूकी छे....अनंत आनंदसहित ए
केवळज्ञाननुं स्वागत करवा.... वीतरागभावथी एने
वधाववा....अने एनी अनंत गंभीरताने आत्मामां समाडी
देवा आपणे उत्सुक छीए....वेलावेला पधारो....हे भगवान!
सम्यक्त्वनां फूलडे आपनुं स्वागत करीए छीए.