Atmadharma magazine - Ank 348
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म : आसो: २४९८
मारुं लक्षण ज्ञानचेतना
आत्मा ज्ञानी थयो तेनुं लक्षण शुं? ते ज्ञानी कया
चिह्नथी ओळखाय? ते समजावतां आचार्यदेव कहे छे के–
जड कर्मो के शरीरादि तो तद्न जुदां छे; ते तरफनो भाव,
एटले के कर्मचेतना के कर्मफळचेतना ते बंनेथी भिन्न
ज्ञानस्वभावने छे. ज्ञानचेतनाने ओळखतां ज ज्ञानी
साचा स्वरूपे ओळखाय छे. आवी ओळखाण करनार
जीवने पोतामां पण ज्ञानचेतना प्रगटे छे. जेणे
ज्ञानचेतना प्रगटी तेणे अनंत ज्ञानीओने ओळखीने
तेमनी अभेदभक्ति करी. ज्ञानीनी आवी ज्ञानचेतानानुं
अद्भूत–आनंदकारी वर्णन गुरुदेवना आ प्रवचनमां
आप वांचशो. (समयसार गाथा ७प)
* धर्मी जाणे छे के मारुं लक्षण ज्ञानचेतना छे. ज्ञानचेतनामां अज्ञानमय
रागादिभावोनुं के कर्मोनुं कर्तापणुं जराय नथी, अत्यंत जुादाई छे.
* चेतना वगरना रागादिभावोने मारी चेतना साथे तन्मयता केम होय?
एटले, रागादिभावो–के जेमनामां चेतनपणुं नथी, तेमने मारी चेतना साथे
व्यापकध्याप्यपणुं नथी, तेथी ते मारी चेतनानुं कार्य नथी.
* कर्मचेतना, के कर्मफळचेतना ए बंने वगरनी ज्ञानचेतना, ते ज्ञानचेतना साथे
मारा आत्मानुं तन्मयपरिणमन छे–एम धर्मी पोताने ज्ञानचेतनारूप अनुभवे छे.
* अहीं बे ज भाग पाडीने धर्मीनुं चिह्न समजाव्युं छे : एक तो ज्ञानीना
लक्षणमां जे समाय ते भाग; अने बीजो ज्ञानीना लक्षणथी जे बहार रहे ते भाग.