Atmadharma magazine - Ank 348
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: आसो: २४९८ आत्मधर्म : ४७ :
वंदित्तु सव्वसिद्धे
I परमागमनुं पवित्र मंगलाचरण I
समयसारे देखाडेलो शुद्धात्मा जयवंत छे
सोनगढमां श्री कुंदकुंदाचार्यभगवानरचित वीतरागी परमागमो
आरसमां कोतराववा माटे जे भव्य परमागममंदिर बंधाई रह्युं छे, तेमां
लगाडवाना आरसमां समयसारनी पहेली गाथा कोतरवानी शरूआतनुं
मंगल–मूहूर्त आसो सुद पुनमे, कुंदशासनना महान प्रभावक पू. श्री
कहानगुरुना मंगल हस्ते थयुं.
अहा, बे हजार वर्ष पहेलांंना पावन दश्यो आजे ताजां थता
हतां....ज्यारे कुंदकुंदभगवाने स्वानुभूतिना निजवैभवमांथी काढी–काढीने
चैतन्यना महामंत्रो समयसार परमागमरूपे टंकोत्कीर्ण कर्यां.... तेमणे
ज्यारे सर्वे सिद्धोने नमस्कार करतां वंदित्तु सव्वसिद्धे...लखवानो प्रारंभ
कर्यो हशे त्यारे कुदरतनुं वातावरण आनंदथी केवुं नाची ऊठयुं हशे!
आजे पण फरीने एवुं ज वातावरण लागतुं हतुं. कहानगुरुदेवे
समयसारना अचिंत्य भावो खोली–खोलीने मुमुक्षुहृदयोमां तो टंकोत्कीर्ण
कर्यां ज छे..... ने आजे तेओश्रीना पावन सुहस्ते वंदित्तु सव्वसिद्धे.....
नो पहेलो अक्षर आरसमां टंकोत्कीर्ण थतो देखीने मुमुक्षु हैयां आनंदथी
ऊछळता हता. गुरुदेव सवारथी मनमां ने मनमां भगवान
कुंदकुंदचार्यदेवने याद करी–करीने, हैयामां बोलावी–बोलावीने, तेमना
मंगल आर्शीवाद झीलता हता.....पोताना ‘समयसार’ नो आ महोत्सव
जोवा जाणे कुंदकुंदप्रभुजी साक्षात् पधार्या होय.....एवुं लागतुं हतुं.
प्रवचनमां नियमसार कळश १७० वांचतां गुरुदेवे महा
प्रमोदपूर्वक कह्युं के–
अहा, सतोना हदयमां तो अनंत–अनंत ज्ञान–आनंदवाळुं सहज
परम चैतन्यतत्त्व जयवंत वर्ते छे....आ ज महान मंगळ छे. अहा,
चैतन्यतेज सहित