Atmadharma magazine - Ank 349
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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३४९
अनंत चैतन्यदीवडा प्रगटावो
आनंदमय दीवाळी सवाया आत्मलाभ
त्मामां चैतन्य –दीवडा प्रगटे अने भगवान
महावीर जे मार्गे निर्वाण पाम्या ते मार्गरूपे आ आत्मा
पण परिणमे – ए साचो निर्वाणमहोत्सव छे, ए साची
दीवाळी छे. गुरुदेवना प्रतापे ए मार्ग आपणने मळ्‌यो
छे. महावीर परमात्मा जेवुं आपणुं परमात्मतत्त्व
आपणी चेतनापरिणतिमां बिराजी रह्युं छे अने ते
चेतना अनंता आनंद – दीवडाथी झगझगायमान छे.
अहो, आनंदमय सम्यक्त्वप्रकाशथी शोभतुं
चैतन्यप्रभात ए ज साचुं सुखमय सुप्रभात छे. एवा
सुप्रभाती – संतोने नमस्कार करीए छीए, तेमना मंगल
– आशीष लईने ‘सवाया आत्मलाभ’ नी भावना
भावीए छीए.
तंत्री: पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार * संपादक: ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९९ कारतक (लवाजम: चार रूपिया) वर्ष ३० : अंक