Atmadharma magazine - Ank 349
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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णमो अरिहंताणं ।
णमो सिद्धाणं ।
णमो आइरियाणं ।
णमो उवज्झायाणं ।
णमो लोए सव्वसाहूणं।
अहो, पंचपरमेष्ठी भगवंतो!
आपने नमस्कार करतां अपार आनंद थाय छे.... आपना
परिवारमां आवे ते, आपने साचा ज नमस्कार करी शके. आपने
नमस्कार करीने प्रभो! अमे आपना परिवारमां आव्या....
आपना मार्गमां आव्या.... संसारनी संगतिमांथी छूटा पडीने अमे
आपनी पवित्र पंक्तिमां आव्या.
धन्य आपनो मार्ग! जे आपना मार्गमां आव्यो ते
संसारना बीजा कोई मार्ग प्रत्ये कदी ललचाय नहीं; जे आपने
नम्यो ते जैनमार्ग सिवाय बीजे क््यांय नमे नहीं. अहा, धन्य
अमारुं जीवन के अमने पंचपरमेष्ठीनो परिवार मळ्‌यो. प्रभो!
आपनी मंगलछायामां अमारा ‘आत्म–धर्म’ विकसे, अमारा
रत्नत्रय खीले... ने वृद्धिगत थईने केवळज्ञान सुधी पहोंचे.... ए
ज मंगल प्रार्थना छे.