Atmadharma magazine - Ank 349
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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वार्षिक वीर संवत
लवाजम २४९९
चार रूपिया कारतक
वर्ष : ३० NOVE.
अंक : १ 1972
प्रभो! आप मोक्ष पधार्या... सिद्धालयवासी
थया...... क्षेत्रे भले दूर थया पण अमारा ज्ञानथी आप दूर
नथी, पूर्ण आनंद अने ज्ञानस्वरूपे आप अमारा ज्ञानमां
वर्ती ज रह्या छो.. अने अमारुं आ ज्ञान आपना उपर मीट
मांडीने, आपना पगले – पगले, आपना आनंदमार्गे आवी
ज रह्युं छे..... क्षणे क्षणे विरह तूटतो जाय छे, अंतर ओछुं
थतुं जाय छे.
आप अत्यारे भरतक्षेत्रमां भले न हो, पण आपनां
पगलां तो अहीं शोभी ज रह्या छे, आपनो मार्ग तो चाली
ज रह्यो छे.... अहा! केवो सुंदर छे आपनो मार्ग! केवा सुंदर
छे आपना मार्गे चालनारा जीवो! प्रभो! आपना आ मार्गे
चालतां अमने आनंद थाय छे. अने एम थाय छे के वाह
देव! आप तो साधकना हृदयमां सदा बिराजमान छो......
आप खरेखर साधकना भगवान छो..... अमारा भगवान
छो...... नमस्कार छे आपने.... अने आपना मार्गने....
अमेय आनंदथी ए मार्गे आवी रह्या छीए.