करीने अरिहंत थया; सुधर्मस्वामी आजे ज श्रुतकेवळी थया..... ए रीते आजे
मोक्षदीवडा प्रगट्या..... केवळज्ञानदीवडा प्रगट्या ने श्रुतज्ञानना दीवडा
प्रगट्या. आवा मंगल–चैतन्यदीवडानी हारमाळा प्रगटवानो दिवस एटले
दीपमालिका पर्व. अहा, आजे अढीहजार वर्षे ए चैतन्यदीवडाने याद करतां
पण मुमुक्षुने केवो आनंद थाय छे! एनी केवी भावना जागे छे! तो ए
आनंदमय चैतन्यदीवडा जेने असंख्यप्रदेशे झगझगी ऊठ्या तेना आनंदनी शी
वात!!
वीरप्रभुना मार्गमां अंधारुं नथी, आजेय ए उज्वळ मार्ग ज्ञानना प्रकाशथी
झळकी रह्यो छे.... ने हजारो वर्षो सुधी प्रकाशमान ज रहेवानो छे.
वाळीने आपणने वीरमार्गे चडाव्या... ए मार्गे जतां आनंद थाय छे.
महिमा प्रसिद्ध कर्यो. अहा, पूर्ण आनंदथी भरेला आत्मामां परभावनो कोई
खखडाट क््यां छे? आवा पूर्णानंदथी भरेलो आत्मा ते पोते मंगळ छे, तेनुं
स्मरण अने भावना करवा ते मंगळ छे.