Atmadharma magazine - Ank 349
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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कारतक २४९९ ‘‘आत्मधर्म’’
(परम स्वभावनी भावना वडे आत्मामां चैतन्यदीवडा प्रगट करो)
आसो वद अमास
आजे वीर – निर्वाणनुं २४९९ मुं वर्ष बेठुं. वीरप्रभुजी आजे
अभूतपूर्व सिद्धपद पाम्या; गौतमगणधर आजे ज अपूर्व केवळज्ञान प्रगट
करीने अरिहंत थया; सुधर्मस्वामी आजे ज श्रुतकेवळी थया..... ए रीते आजे
मोक्षदीवडा प्रगट्या..... केवळज्ञानदीवडा प्रगट्या ने श्रुतज्ञानना दीवडा
प्रगट्या. आवा मंगल–चैतन्यदीवडानी हारमाळा प्रगटवानो दिवस एटले
दीपमालिका पर्व. अहा, आजे अढीहजार वर्षे ए चैतन्यदीवडाने याद करतां
पण मुमुक्षुने केवो आनंद थाय छे! एनी केवी भावना जागे छे! तो ए
आनंदमय चैतन्यदीवडा जेने असंख्यप्रदेशे झगझगी ऊठ्या तेना आनंदनी शी
वात!!
धन्य छे आपणा आ महावीरशासनने – के जेमां आपणने आजेय
एवा दिव्य चैतन्यदीवडाथी झगझगता आत्माओ नजरे जोवा मळे छे.
वीरप्रभुना मार्गमां अंधारुं नथी, आजेय ए उज्वळ मार्ग ज्ञानना प्रकाशथी
झळकी रह्यो छे.... ने हजारो वर्षो सुधी प्रकाशमान ज रहेवानो छे.
‘मार्ग’ तो हतो ज... अनादिथी चाली ज रह्यो छे ने अनंतकाळ चालु
ज रहेवानो छे. आजे गुरुदेवे आपणने ए मार्ग देखाड्यो..... उन्मार्गेथी पाछा
वाळीने आपणने वीरमार्गे चडाव्या... ए मार्गे जतां आनंद थाय छे.
आजे मंगलदीपावलीनी सवारमां ज, मीठा जळथी पूरा भरेला
श्रीफळना बहाने गुरुदेवे पूर्णआनंदथी भरेला आत्माने याद करीने तेनो परम
महिमा प्रसिद्ध कर्यो. अहा, पूर्ण आनंदथी भरेला आत्मामां परभावनो कोई
खखडाट क््यां छे? आवा पूर्णानंदथी भरेलो आत्मा ते पोते मंगळ छे, तेनुं
स्मरण अने भावना करवा ते मंगळ छे.