फळमां भगवान महान आनंद– प्रमोद पाम्या, तेना स्मृतिचिह्मरूपे
त्रण – मोदक (निर्वाण लाडु) जिनमंदिरमां स्थापन कर्यां, ने मोक्ष
प्रत्येनो प्रमोद मुमुक्षुओए व्यक्त कर्यो; अहो वीरनाथ! अमने मोक्षनो
मार्ग बतावीने आप तो मोक्षपुरीमां सिधाव्या. आपनो ते मार्ग,
आपनुं ते शासन आजेय जीवंत वर्ते छे – जयवंत वर्ते छे. चोथाकाळे
आपे बतावेला मार्गे अमे पंचमकाळना जीवो पण आवी रह्या छीए.
आनंदस्वभावथी भरेलो, परम पारिणामिकभाव, तेनी भावना ते
मोक्षनुं कारण छे. आ परमस्वभावनी भावनामां निश्चय व्रत –
समिति – प्रायश्चित वगेरे बधा धर्मो समाई जाय छे. अहो, आवो
स्वभाव बधा जीवोमां छे. तेनी सन्मुख थईने भावना करनार जीव
अत्यंत आसन्नभव्य छे. आवा स्वभावनी भावना वडे भगवान मोक्ष
पाम्या. हे जीव! तुं पण आवा स्वभावनी भावना कर, तो तारी
आत्मस्वभावनी भावनामां जे अतीन्द्रिय आनंदनां अमृत भर्या छे
ते ज दिवाळीनां अपूर्व पकवान्न छे. आ दीवाळीना ऊचा पकवान्न
पीरसाय छे.
वैभवनी शी गणतरी छे! अरे, एकवार तो आश्चर्य करीने आत्माने
जोवा आव, – के केवो छे आत्मा? जेनां आटला वखाण ने महिमा
ज्ञानीओ करे छे ते आत्मा अंदर केवो छे! तेने जोवानुं कुतूहल तो कर.
एने देखतां तुं न्याल थई जईश.
तेनी सहाय माटे रूा. ११००३ (अगियार हजारने त्रण) मुमुक्षुओ
तरफथी जाहेर करवामां आव्या हता.