Atmadharma magazine - Ank 349
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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कारतक २४९९ ‘‘आत्मधर्म’’
रंगबेरंगी दीवडाथी झगमगता जिनमंदिरमां भक्तिभरेला
वातावरणमां निर्वाकल्याणकसंबंधी महापूजन थयुं. भगवाननी
मोक्षदशा एटले आनंद– प्रमोद दशा. ‘मोद’ एटले आनंद; रत्नत्रयना
फळमां भगवान महान आनंद– प्रमोद पाम्या, तेना स्मृतिचिह्मरूपे
त्रण – मोदक (निर्वाण लाडु) जिनमंदिरमां स्थापन कर्यां, ने मोक्ष
प्रत्येनो प्रमोद मुमुक्षुओए व्यक्त कर्यो; अहो वीरनाथ! अमने मोक्षनो
मार्ग बतावीने आप तो मोक्षपुरीमां सिधाव्या. आपनो ते मार्ग,
आपनुं ते शासन आजेय जीवंत वर्ते छे – जयवंत वर्ते छे. चोथाकाळे
आपे बतावेला मार्गे अमे पंचमकाळना जीवो पण आवी रह्या छीए.
प्रवचनमां नियमसारनी ११९मी गाथा द्वारा, मोक्षना
कारणरूप भावना बतावतां गुरुदेवे कह्युं के आ आत्मा पूर्ण
आनंदस्वभावथी भरेलो, परम पारिणामिकभाव, तेनी भावना ते
मोक्षनुं कारण छे. आ परमस्वभावनी भावनामां निश्चय व्रत –
समिति – प्रायश्चित वगेरे बधा धर्मो समाई जाय छे. अहो, आवो
स्वभाव बधा जीवोमां छे. तेनी सन्मुख थईने भावना करनार जीव
अत्यंत आसन्नभव्य छे. आवा स्वभावनी भावना वडे भगवान मोक्ष
पाम्या. हे जीव! तुं पण आवा स्वभावनी भावना कर, तो तारी
पर्याय अंतरमां वळे ने तारामां चैतन्यदीवडारूप दिवाळी प्रगटे.
आत्मस्वभावनी भावनामां जे अतीन्द्रिय आनंदनां अमृत भर्या छे
ते ज दिवाळीनां अपूर्व पकवान्न छे. आ दीवाळीना ऊचा पकवान्न
पीरसाय छे.
अहो, जेने मुक्ति एकदम नजीकमां थवानी छे, एवा अति
आसन्न भव्य जीवो पोताना परमानंदमय सहज स्वभावने भावे छे.
चैतन्यनी भावनाना आनंद पासे जगतना राजा – महाराजाना
वैभवनी शी गणतरी छे! अरे, एकवार तो आश्चर्य करीने आत्माने
जोवा आव, – के केवो छे आत्मा? जेनां आटला वखाण ने महिमा
ज्ञानीओ करे छे ते आत्मा अंदर केवो छे! तेने जोवानुं कुतूहल तो कर.
एने देखतां तुं न्याल थई जईश.
आजे दीवाळीनी खुशालीमां, ग्रंथाधिराज श्री समयसारनी
नवी आवृत्ति फरी छपाववानुं गुरुदेवना आशीर्वादपूर्वक नक्की थयुं, ने
तेनी सहाय माटे रूा. ११००३ (अगियार हजारने त्रण) मुमुक्षुओ
तरफथी जाहेर करवामां आव्या हता.