कारतक २४९९ ‘‘आत्मधर्म’’ १७
वीतरागविज्ञान – प्रश्नोत्तर
(छहढाळानी त्रीजीढाळना प्रवचनो उपरथी संकलन: गतांकथी चालु))
७१. पोताना शुद्धआत्मानी ओळखाण, अने अरिहंतदेवनी ओळखाण–तेमां पहेलुं
कोण?
– बंने साथे थाय छे.
७२. ते ओळखाण क््यारे थई?
ज्ञानपर्याय अंतरमां वळी त्यारे.
७३. राग वडे मोक्षमार्ग शरू थाय?
ना; आत्माना अनुभव वडे ज मोक्षमार्ग शरू थाय.
७४. चैतन्यप्रभुने लक्षमां लेतां शुं थयुं?
आत्मामां आनंदसहित केवळज्ञानना अंकूरा फूट्या.
७प. शुभरागमांथी ज्ञाननो अंकूर आवे? – ना.
७६. आनंदनो मार्ग क्यो छे?
आतमराम निजपदमां रमे ते आनंदनो मार्ग छे.
७७. रागादिभावो केवा छे?
ते परपद छे; दुःखनो मार्ग छे.
७८. मोक्षनो मार्ग शेमां समाय छे?
स्वपदमां, एटले निजस्वरूपमां समाय छे.
७९. साधकनुं स्वसंवेदनरूप भावश्रुतज्ञान केवुं छे?
ते केवळज्ञाननी ज जातनुं छे, अतीन्द्रिय छे.
८०. सम्यक्चारित्र केवुं छे?
शुभाशुभरागथी निवृत्तिरूप अने शुद्ध चैतन्यमां प्रवृत्तिरूप सम्यक्चारित्र छे.
८१. शुभाशुभराग केवा छे?
संसारना कारण छे.
८२. सम्यक्चारित्र केवुं छे ?
मोक्षनुं कारण छे; राग वगरनुं छे.
८३. विकल्पमां चेतना छे?... ना.
८४. चेतनामां विकल्प छे ?
ना; बंनेनुं स्वरूप जुदुं छे.