उपादेय छे, ते ज तेने समीपमां वर्ते छे. कारणस्वभावरूप जे परमात्मा, तेनी
समीपता वडे ज साची सामायिक होय छे.
संयम – तपमां सदाय आत्मा ज समीप वर्ते छे; शुभरागनी समीपता नथी, ते तो
जुदो वर्ते छे एटले दूर छे, ने परमस्वभावी आत्मा ज बधी निर्मळपर्यायोमां
तन्मयपणे वर्ते छे, तेथी ते ज अत्यंत समीप छे.
अमने अमारी बधी पर्यायोमां साथ छे. ज्यां रागनी प्रीति हती त्यां परमात्मतत्त्व
दूर हतुं, त्यारे जीवने सामायिकभाव न हतो. हवे ज्यां परमात्मतत्त्व अनुभवमां
आव्युं ने पर्याय तेमां एकत्वरूप थईने परिणमी त्यां राग–द्वेष तेमांथी दूर थया,
भगवान वर्ते छे तेने ज जैनशासनमां सामायिक कही छे. भगवानने जे भूल्यो तेने
सामायिक केवी? आत्माने दूर राखीने गमे तेटला व्रत – तप – संयम करे पण एमां
क्यांय जीवने समता न थाय, सामायिक न थाय, धर्म न थाय. साचा धर्मनी जे कोई
क्रिया छे, एटले सामायिक वगेरे जे कोई निर्मळपर्याय छे ते बधीये आत्मानी