Atmadharma magazine - Ank 350
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : मागशर : २४९९
सामायिकमां आत्मा
ज समप छ
परमगुरुना प्रसादथी प्राप्त करायेलो परमात्मा
(नियमसार गा. १२७ उपरनां प्रवचनमांथी)
केवळी भगवानना शासनमां सामायिकवंत धर्मीजीव केवा होय? ते कहे छे:
तेने श्रद्धा – ज्ञान –चारित्रमां, संयम – तपमां, सर्व पर्यायोमां पोतानो आत्मा ज
उपादेय छे, ते ज तेने समीपमां वर्ते छे. कारणस्वभावरूप जे परमात्मा, तेनी
समीपता वडे ज साची सामायिक होय छे.
आवा धर्मीजीवमां अहीं भावी जिननुं द्रष्टांत आप्युं छे. अहो, अल्पकाळमां
जेओ सर्वज्ञ – परमेश्वर थवाना छे एवा भावी जिनने अने सर्वे सम्यग्द्रष्टिओने
संयम – तपमां सदाय आत्मा ज समीप वर्ते छे; शुभरागनी समीपता नथी, ते तो
जुदो वर्ते छे एटले दूर छे, ने परमस्वभावी आत्मा ज बधी निर्मळपर्यायोमां
तन्मयपणे वर्ते छे, तेथी ते ज अत्यंत समीप छे.
धर्मी कहे छे के अहो, अमारुं परमात्मतत्त्व अमारी पर्यायथी कदी दूर थतुं नथी;
परम गुरुना प्रसादथी अमारुं परमात्मतत्त्व अमने प्राप्त थयुं छे. ते परमात्मानो
अमने अमारी बधी पर्यायोमां साथ छे. ज्यां रागनी प्रीति हती त्यां परमात्मतत्त्व
दूर हतुं, त्यारे जीवने सामायिकभाव न हतो. हवे ज्यां परमात्मतत्त्व अनुभवमां
आव्युं ने पर्याय तेमां एकत्वरूप थईने परिणमी त्यां राग–द्वेष तेमांथी दूर थया,
एटले तेने आत्मानी समीपताथी सदाय सामायिक छे. अहा, जेनी पर्यार्ये – पर्यायमां
भगवान वर्ते छे तेने ज जैनशासनमां सामायिक कही छे. भगवानने जे भूल्यो तेने
सामायिक केवी? आत्माने दूर राखीने गमे तेटला व्रत – तप – संयम करे पण एमां
क्यांय जीवने समता न थाय, सामायिक न थाय, धर्म न थाय. साचा धर्मनी जे कोई
क्रिया छे, एटले सामायिक वगेरे जे कोई निर्मळपर्याय छे ते बधीये आत्मानी