आत्माथी जे विमुख वर्ते तेने धर्म केवो ? ने समता केवी? आत्मा शुं छे तेनी जेने
खबर नथी तेने आत्मानी समीपता केवी? ने सामायिक केवी
परमेश्वरनो ज परिचय छे. अरे, चैतन्यना भावमां भव केवा? हे जीव! परम चैतन्य
सन्मुख चेतनाने जागृत करीने एवो पुरुषार्थ कर के एक क्षणमां अंदर चिदानंद
स्वभावमां प्रवेश कर.... ने परभावोथी छूटो पडी जा. शुद्धतत्त्वने जाणतां तेमां
एकाग्रताथी सामायिक थाय छे. स्वाश्रित शुद्धपरिणति ते ज सामायिक छे, तेमां
आत्मानी प्राप्ति छे. टंकोत्कीर्ण निजमहिमामां लीन एवा शुद्धतत्त्वने सम्यग्द्रष्टि साक्षात्
जाणे छे. तीर्थंकरो – गणधरो – संतमुनिवरोना अंतरमां जे सदा स्थित छे एवुं परम
महिमा वंत चैतन्यतत्त्व मने पण मारी अनुभूतिमां गोचर थाय छे – एम सम्यग्द्रष्टि
अनुभवे छे. पोते पोताने प्रत्यक्ष थाय – एवो ज मारो स्वभाव छे. आवा पोताना
आत्माने एककोर मुकीने कदी कल्याण थाय नहीं. पोताना महान तत्त्वने ज्ञानमां
समीप करीने एटले के स्वानुभवगोचर करीने अपूर्व कल्याण थाय छे. आवो आत्मा
कांई अगोचर वस्तु नथी; ईंद्रियज्ञानथी ते अगोचर होवा छतां, सम्यग्द्रष्टिना
स्वानुभवज्ञानमां ते आनंदसहित गोचर थाय छे.
भवभयने हरनारो ते जीव रागना नाशने लीधे अभिशम छे – सुंदर छे – मोक्षना
मार्गमां शोभे छे. रागवडे जीवनी सुंदरता नथी. रागना अभाव वडे जे स्वाश्रित
समभाव प्रगट्यो तेना वडे जीवनी सुंदरता छे.
सिवाय बीजा बधायने दूर राख. पोतामां आवा आनंदमय शुद्धात्मतत्त्वनी आनंदमय
अनुभूति थई ते ज परमगुरुओनो प्रसाद छे. अहो, परमगुरुओए प्रसन्न थईने
अमने आवो शुद्धात्मानो प्रसाद आप्यो. तेमना अनुग्रहवडे अमने जे शुद्धात्म तत्त्वनो
उपदेश मळ्यो तेनाथी अमने स्वसंवेदनरूप आत्मवैभव प्रगट्यो.