Atmadharma magazine - Ank 350
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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फोन नं. : ३४ “आत्मधर्म” Regd. No. G. 182
सोनगढ– समाचार
परम पूज्य गुरुदेव सुखशांतिमां बिराजमांन छे. बंने वखत सुंदर प्रवचनो
विशेषमां परमागम – मंदिर संबंधमां मुमुक्षुओने ए जाणीने आनंद थशे के ईटालीथी
आवेला मशीनद्वारा जिनागमना कोतरकामनुं काम सुंदर रीते चाली रह्युं छे. मशीन सोनगढ
आवी गयुं छे, ने भारतना ज कुशळ कारीगरो द्वारा तेनुं संचालन थई रह्युं छे. आ कारतक वद
आठमे मशीनद्वारा पू. गुरुदेवना मंगलहस्ते “ कोतरवानुं मुहुर्त थयुं तथा
पंचास्तिकायपरमागमना मंगल श्लोकना पहेलां त्रण अक्षर (
सहज..) गुरुदवेना सुहस्ते
कोतराया. आ प्रसंगे अजित मुद्रणालयमां उपस्थित भाई बेनोमां हर्षनुं वातावरण फेलायुं
हतुं. पू. बेनश्री – बेन पण पधार्या हता ने गुरुदेवना सुहस्ते कोतरायेली जिनवाणी पर
केशरना चांदला करीने बहुमान कर्युं हतुं. भाईश्री पोपटभाई वोराए आ प्रसंगनी खुशालीमां
पोताना तरफथी रूा. पांचहजार ने एक जाहेर कर्यां हता; ते उपरांत बीजा मुमुक्षु भाई–बेनो
तरफथी पण रकमो जाहेर थई हती. गुरुदेव खूब प्रसन्नचित्त हता. हवे परमागमना
कोतरकाममां झडप आवे ते माटे गुरुदेवनी तेमज सर्वे मुमुक्षुओनी भावना फळीभूत थशे, अने
मशीनद्वारा झडपथी सुंदर कोतरकाम थशे अत्यार सुधीमां वीश पाटिया (लगभग प० गाथा)
नुं कोतरकाम पूरुं थयुं छे. आ कार्यमां झडपथी मशीनप्रूफ जोवानुं काम अजित प्रेसना मालिक
भाईश्री मगनलालजी चीवटपूर्वक संभाळी रह्या छे. बीजा पण अनेक भाईओनो सहकार
मळी रहीयो छे. मु. श्री रामजीभाई पोते आ कार्यमां जात देखरेख राखी रह्या छे. आ प्रकारना
मशीनथी आवुं कोतरकाम भारतमां पहेली ज वार थई रह्युं छे. – ए पण कुंदकुंदप्रभुना
परमागमनो ज कोई महान प्रभाव छे; अने गुरुदेव जेवा अजोड संतना सुहस्ते आजे
कुंदकुंदप्रभुनी अनुभववाणी टंकोत्किर्ण थई रही छे. गुरुदेवने अगाउ स्वप्नमां आकाशमांथी
मोटा – मोटा श्रुतना पाटियां ऊतरता देखाता हता – ते वात आजे साक्षात् बनी रही छे.
परमागम कोतरेला पाटिया जोईने गुरुदेव प्रसन्नचित्तथी कहे छे के घणा वर्षो अगाउ श्रुतना जे
पाटिया आकाशमांथी ऊतरता देखाता हता ते आवा ज हता. अहो! गुरुदेवना प्रतापे,
गगनविहारी जिननाथनी वाणी आजे आपणने मळी छे, ए वाणीए शुद्धात्मदेवने आपणा
भावश्रुतमां टंकोत्किर्ण करी दीधो छे. तेथी अंतरमांथी भक्तिना रणकार ऊठे छे के –
धन्य दिव्यवाणी “कारने रे जेणे प्रगट कर्यो आत्मदेव...
जिनवाणी जयवंत त्रणलोकमां रे... जिनवाणी जयवंत मुज आत्मामां रे...
(– ब्र. ह. जैन)
प्रकाशक: श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ (सौराष्ट्र) प्रत: ३२प०
मुद्रक : मगनलाल जैन, अजीत मुद्रणालय : सोनगढ (सौराष्ट्र) : मागशर (३५०)