शुद्धभावथी तूटे कर्म.
स्वमां मारुं साचुं राज,
परमां छे नहीं मारुं काज.
सार तो एक समयसार,
बाकी जाण्युं बधुं असार.
देहथी जुदो आतमराम,
शरीरनुं मारे नथी काम.
अनुभवी हुं आतमराम
दुनियानुं मारे शुं काम?
पूरण छुं ने पुराण छुं,
सुख – आनंदनी खाण हुं.
छोड... छोड तुं लाखनुं लक्ष,
जोड.... जोड रे आतम – लक्ष.
वीतरागतामां दुःख नहीं,
रागमां सुख लेश नहीं.
आनंदधाममां शोक शा?
सुखी तमे छो हे भगवान!
वर्ते छे मने तारुं ज्ञान
मारी मुक्ति ने तारुं ज्ञान,
अजोड छे ए ज्ञेय ने ज्ञान.
निज्वैभव मैं लीधो छे,
श्री कुंदप्रभुए दीधो छे.
सुखसरोवर मारुं धाम,
चैतन्य हंस छे मारुं नाम.
साचो साचो आतमराम,
मोहतणुं मारे शुं काम?
स्वानुभव लई अंदर जा.
विकल्पथी तुं निवृत्त था.
जो चाहे तुं साधकभेख,
बाहुबलीनी मुद्रा देख!