Atmadharma magazine - Ank 351
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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३५१
ज्ञानस्वभावनो निर्णय
ताजेतरमां १४४ मी गाथाना प्रवचनमां गुरुदेवना श्रीमुखे
ज्ञानस्वभावना अपूर्व निर्णयनी वात सांभळता मुमुक्षुओ डोली
ऊठता हता के वाह! आत्मा अनुभवनी एकदम सरस वात छे.
गुरुदेवे कह्युं के – अहो! निर्णयमां केटली ताकात छे!
विकल्पथी लाभ माने ते निर्णय साचो नहीं. ‘ज्ञानस्वभाव’ ज त्यारे
नककी थाय के विकल्पथी जुदो पडे त्यारे; केमके ज्ञानस्वभावमां
विकल्पनी तो नास्ति छे भाई! आत्माना अनुभवनी रमतुं जुदी छे. –
जेनो निर्णय करतां आखी दुनियानो रस ऊडी जाय; आखी दुनिया फरे
तोय एनो निर्णय न फरे. – केमके ते निर्णयमां ज्ञानस्वभावनुं ज
अवलंबन छे, बीजा कोईनुं अवलंबन एमां नथी. भाई, एकवार हैयुं
सरखुं राखीने आवा ज्ञानस्वभावनो निर्णय कर. तो तने अनुभवनो
अवसर आवशे.
‘ज्ञानस्वभाव छुं’ एम निर्णय करवा जाय त्यां रागनी –
पुण्यनी के संयोगनी होंश रहे नहि, केमके तेनाथी जुदा
ज्ञानस्वभावनो निर्णय करवो छे; ते निर्णय करवा माटे अंर्तस्वभाव
तरफ ज्ञान झुके छे. (विशेष माटे अंदरनां प्रवचनो वांचो.)