Atmadharma magazine - Ank 351
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९९ आत्मधर्म : १९ :


२८प.



२८६.


२८७.


२८८.


२८९.



२९०.


२९१.



२९२.
ना; निश्चयपूर्वक ज साचो व्यवहार
होय.
कोईने एकलुं निश्चय सम्यक्त्व
होय?
हा, सिद्धगभवंतो वगेरेने एकलुं
निश्चय सम्यक्त्व छे.
चैतन्यतत्त्व केवुं छे?
अहा! एनो अद्भुत महिमा छे,
एमां अनंत स्वभावो छे.
सम्यग्दर्शन केम प्रगटे छे?
आनंदना अपूर्व वेदनसहित
सम्यग्द्रर्शन प्रगटे छे.
सम्यग्द्रर्शननी साथे धर्मीने शुं होय
छे?
निःशंकतादि आठगुण होय छे.
जेणे चैतन्यसुख चाख्युं नथी तेने शुं
होय छे?
तेने ऊंडेऊडे रागनी – पुण्यनी
भोगनी चाहना होय छे.
सम्यग्द्रष्टि–जीव क्यां वर्ते छे?
चेतनामां ज तन्मय वर्ते छे, रागमां
वर्ततो नथी.
धर्म करशुं तो पैसा मळशे – ए
साचुं?
ना; एने धर्मनी खबर नथी, ते तो
रागने धर्म समजे छे.
धर्मथी शुं मळे? –धर्मथी आत्मानुं
वीतरागीसुख मळे.
२९३.


२९४.
२९प.


२९६.


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२९९.


३००.

३०१.



३०२.
पुण्यरूप धर्म केवो छे?
ते संसार – भोगनो हेतु छे, ते
मोक्षनो हेतु नथी.
ते पुण्यने कोण ईच्छे छे – अज्ञानी.
धर्मी कोने वांछे छे?
ते पोताना चैतन्य–चिंतामणि
सिवाय कोईने वांछतो नथी.
स्वर्गनो देव आवे तो?
– ते कांई चमत्कार नथी; खरो
चमत्कार तो चैतन्यदेवनो छे.
वीतरागतानो साधक धर्मी कोने
नमे?
वीतरागी देव सिवाय बीजा कोई
देवने ते नमे नहि.
अरिहंतना शरीरमां रोग के अशुची
होय? – ना.
साधकना शरीरमां रोगादि होय?
हा; पण अंदर आत्मा सम्यक्त्वादिथी
शोभी रह्यो छे.
मुनिओनो शणगार शुं? रत्नत्रय
तेमनो शणगार छे?
एवा मुनिओने देखतां आपणने शुं
थाय छे?
अहो, बहुमानथी तेमना चरणोमां
शिर नमी पडे छे.
धर्ममां मोटो कोण?
जेना गुण वधारे ते मोटो; धर्ममां