
३१९.
३२०.
३२१.
३२२.
३२३.
३२४.
३२प.
३२६.
३२७.
३२८.
रागथी जुदी ज हती.
शुभरागने धर्म माने तेने त्याग
वैराग होय? – ना.
सम्यग्द्रष्टि अव्रती होय तोपण
प्रसंसनीय छे?
हा; अव्रती होय छतां तेनुं सम्यक्त्व
प्रशंसनीय छे.
संत–ज्ञानीओ वारंवार शुं कहे छे?
‘जरापण काळ गुमाव्या वगर
सम्यक्त्वने धारण करो.
सम्यग्द्रर्शन तो गमे ते धर्ममां थाय
ने?
ना; जैनमार्ग सिवाय बीजे
सम्यगद्रर्शन होतुं नथी.
सम्यग्द्रर्शन थतां जीवने शुं थयुं?
ते पंचपरमेष्ठीनी नातमां भळ्यो.
सम्यग्द्रर्शन वगरनी शुभ करणी पण
केवी छे?
ते पण जीवने दुःखकारी छे.
शुं नरकमां सम्यग्द्रष्टि होय?
– हा, असंख्यात छे.
कोई सम्यग्द्रष्टि –मनुष्य मरीने
विदेहमां ऊपजे? – ना.
जैनमार्ग केवो छे?
–ए भगवान थवानो मार्गछे.
त्रणकाळ ने त्रणलोकमां जीवने श्रेय
३२९.
३३०.
३३१.
३३२.
३३३.
३३४.
३३प.
३३६.
सम्यक्त्व समान बीजु कोई श्रेय
नथी.
जीवने जगतमां अहितकारी शुं छे?
मिथ्यात्व समान अहितकारी बीजुं
कोई नथी.
मिथ्याद्रष्टि जीव स्वर्गमां जाय तो?
– ते पण संसार ज छे; ते क्यांय
सुखी नथी.
सुखी कोण छे?
सुखी तो समकिती छे के जेणे
चैतन्यतत्त्वने जोयुं छे.
सम्यक्त्व वगरनी बधी करणी केवी
छे?
दुःखनी ज देनारी छे.
दुनिया शुं जुए छे?
दुनिया तो बहारना ठाठमाठने देखे
छे, चैतन्यने नथी देखती.
चैतन्यना धर्मो छे ते बधानुं मूळ शुं
छे?
सर्वे धर्मनुं मूळ सम्यग्द्रर्शन छे
हे जीव! तुं सम्यक्त्वने शीघ्र धारण
कर..... नकामो काळ न गूमाव.
ज्ञान ने चारित्र ते सम्यक्त्व वगर
केवां छे?