
३३७.
३३८.
३३९.
३४०.
३४१.
३४२.
३४३.
३४४.
के मिथ्या छे.
रागनां रस्ते मोक्षमां जवाय? –ना
मोक्षनो रस्तो शुं छे? – सम्यक्त्व
सहित स्वानुभूति.
सम्यक्त्वने अने शुभरागने कांई
संबंध छे?
ना; बंने भावो तद्न जुदा छे.
सम्यक्त्व थतां शुं थयुं?
पहेलांं जे भवहेतु थतुं हतुं ते हवे
मोक्षहेतु थयुं.
संसारमां भमतो जीव कई बे वस्तु
पूर्वे नथी पाम्यो?
एक तो जिनवरस्वामी, अने बीजुं
सम्यकत्व.
भगवान पासे तो जीव अनंतवार
गयो छे ने?
हा, – पण तेणे भगवाने ओळख्या
नहीं.
भगवानने ओळखे तो शुं थाय?
आत्मा ओळखाय ने सम्यग्द्रर्शन
थाय ज.
अनंता जीव मोक्ष पाम्या – ते बधा
शुं करीने मोक्ष पाम्या?
सम्यग्द्रर्शन करीकरीने अनंता जीवो
मोक्ष पाम्या छे.
३४६.
३४७.
३४८.
३४९.
३प०.
३प१.
३प२.
छे? – ना.
सम्यक्त्वनो सरस महिमा सांभळीने
शुं करवुं?
हे जीव! तमे जागो.... सावधान
थाओ.... ने स्वानुभाव करो.
ऋषभदेवना जीवने सम्यक्त्व
पमाडवा मुनिओए शुं कह्युं?
‘हे आर्य! आ सम्यक्त्वनी प्राप्तिनो
अवसर छे, माटे तुं हमणां ज
सम्यक्त्वने ग्रहण कर.
ते सांभळीने ऋषभदेवना जीवे शुं
कर्युं?
मुनिओनी हाजरीमां ते ज वखते
सम्यग्द्रर्शन प्रगट कर्युं.
आ उदाहरण उपरथी अमारे शुं
करवुं?
सम्यक्त्वने ग्रहण करो.... ‘काल वृथा
मत खोवो. ’
देवोना अमृत करतांय ऊंचो रस क्यो
छे?
सम्यग्द्रष्टिनो अतीन्द्रिय आत्मरस
अमृतथी पण ऊंचो छे.
सम्यग्द्रर्शन थतां शुं थयुं?
अहा, सम्यग्द्रर्शन थतां आत्मामां
मोक्षनो सिकको लागी गयो.
आ काळे सम्यग्द्रर्शन पामी