Atmadharma magazine - Ank 351
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९९ आत्मधर्म : २३ :


३प३.
शकाय?
हा, अनेक पाम्या छे.
आ त्रीजा अध्यायमां शेनो उपदेश
छे?
मोक्षना मूळरूप सम्यग्द्रर्शननी

३प४.
आराधनानो.
आ उपदेश सांभळीने शुं करवुं!
‘हे जीव! तुं आजे ज सम्यक्त्वने
धारण कर! ’
(जय जिनेंन्द्र)
शुद्धात्मानो पूजारी

धर्मी कहे छे के सुखना अमृतथी भरेला शुद्धआत्मतत्त्वने हुं सदा पूजुं छुं; शेना
वडे पूजुं छुं? के चैतन्यना समरस वडे पूजुं छुं. पूज्य पण पोते, ने पूजक पण पोते;
बंने जुदा नथी, अभेद छे; ते अभेदनी अनुभूतिमां अमृतरस समरस – शांतरस
उल्लसे छे.
जुओ, आमां बे वात आवी –
एक तो पूजवा योग्य खरेखर पोतानो शुद्धआत्मा छे.
बीजुं, ते शुद्धात्मानी पूजा रागवडे थती नथी, वीतरागी समभाव–वडे ज तेनी
पूजा थाय छे. पूजा एटले तेनी श्रद्धा – ज्ञान तथा तेमां लीनता. आवी स्व–पूजा ते
परम अमृतरसनां स्वादनुं कारण छे, ते मोक्षनो मार्ग छे.
जेनी पूजा करे तेनाथी विरूद्ध भावनो आदर केम थाय? वीतरागी चैतन्य
तत्त्वने जे पूजे ते रागनो आदर केम करे? रागनो आदर करे ते तो विषमभाव छे,
तेमां शुद्धआत्मा आवे नहि ने शांति मळे नहि. रागथी भिन्न थईने चैतन्यभावथी
शुद्ध आत्मानो आदर करतां अंदर परम शांतरस झरे छे.