
३प३.
हा, अनेक पाम्या छे.
आ त्रीजा अध्यायमां शेनो उपदेश
मोक्षना मूळरूप सम्यग्द्रर्शननी
३प४.
आ उपदेश सांभळीने शुं करवुं!
‘हे जीव! तुं आजे ज सम्यक्त्वने
धर्मी कहे छे के सुखना अमृतथी भरेला शुद्धआत्मतत्त्वने हुं सदा पूजुं छुं; शेना
बंने जुदा नथी, अभेद छे; ते अभेदनी अनुभूतिमां अमृतरस समरस – शांतरस
उल्लसे छे.
एक तो पूजवा योग्य खरेखर पोतानो शुद्धआत्मा छे.
बीजुं, ते शुद्धात्मानी पूजा रागवडे थती नथी, वीतरागी समभाव–वडे ज तेनी
परम अमृतरसनां स्वादनुं कारण छे, ते मोक्षनो मार्ग छे.
तेमां शुद्धआत्मा आवे नहि ने शांति मळे नहि. रागथी भिन्न थईने चैतन्यभावथी
शुद्ध आत्मानो आदर करतां अंदर परम शांतरस झरे छे.