Atmadharma magazine - Ank 351
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९९ आत्मधर्म : ३७ :
आ मर्यादित असंख्यप्रदेशी चैतन्यतत्त्वमां अनंत–अनंत गंभीरता भरी छे, अनंत
शक्तिनो पिंड विज्ञानघन ढगलो, जेना अनंत महिमानी गंभीरता विकल्पमां आवी
शके नहि, तेने धर्मी जीव अनुभवे छे. अहो, चैतन्यना रसिकजनो तो पोताना
आत्माने निर्विकल्प चैतन्यरसपणे ज अनुभवे छे. पाणीनो प्रवाह दरियामां भळी जाय
तेम चैतन्यपरिणतिनो प्रवाह झडपथी अंतरमां वळीने चिदानंद समुद्रमां मग्न थयो,
त्यां आत्मा पोताना शांत – आनंदरसमां लीन थयो.
चैतन्यनो मार्ग ऊंडो छे – गंभीर छे. विकल्पोमां तो कांई गंभीरता नथी, ते तो
बहार भमनारा छे; ने धर्मीने चैतन्यपरिणति तो विकल्पथी पार, अनुभूतिना गंभीर
मार्गे अंतरमां वळीने चैतन्यसमुद्रमां एकाग्र थाय छे. आत्मानो मार्ग तो गंभीर –
ऊंडो ज होय ने! जेना वडे अनादिना दुःखथी छूटकारो थाय ने अनंतकाळनुं सुख मळे
– ते मार्गनी शी वात? ते अनुभूतिनी शी वात! वचनातीत वस्तुने वचनथी तो केटली
कहेवी? अनुभवमां ल्ये त्यारे पार पडे तेवुं छे; वचनना विकल्पथी एनो पार पडे तेम
नथी. धर्मीनी पर्याय विकल्पना मार्गेथी पाछी वळी गई छे ने विवेकना मार्गे अंदर ढळी
गई छे. विवेक एटले भेदज्ञान, तेना मारग ऊंडा छे, गंभीर छे, ने तेनुं फळ पण
महान छे. आचार्य भगवंतोना हृदय ऊंडाने गंभीर छे; चैतन्यना अनुभवना रहस्यो
आ समयसारमां भर्या छे.... भव्य जीवोने न्याल करी दीधा छे. वाह रे वाह!
सम्यग्द्रर्शन पामवानी ने भगवानना मार्गमां भळवानी अफर रीत संतोए प्रसिद्ध करी छे.
अरे भाई, तारा शुद्धात्मा तरफनो विकल्प पण तने सम्यग्द्रर्शन आपे तेम नथी,
त्यां बहारमां बीजुं कोण आपशे? तारो विज्ञानघन आत्मा चैतन्यरसथी भरपूर छे,
तेनो रसिलो थईने तेनो स्वाद ले.... एज सम्यग्द्रर्शन छे. बीजी कोई सम्यग्द्रर्शननी
रीत नथी.
शरीर के पैसा तो दूर रह्या. ते तो आत्मानां छे ज नहि, तेनुं कर्तापणुं पण
आत्मामां नथी; ने अंदर ‘हुं शुद्ध ज्ञान छुं’ ईत्यादि जे रागरूप विकल्प छे ते विकल्प
पण चैतन्यना रसथी बहार छे, ते विकल्पने जे पोतानां कार्यपणे करे छे ते जीव
चैतन्यस्वरूपथी भ्रष्ट छे – अज्ञानी छे. ते विकल्पथी पण ज्ञानने पाछुं वाळीने, ज्ञान
प्रवाहने अंदर वाळीने धर्मीजीव पोताने एक चैतन्यस्वरूपे ज अनुभवे छे. धर्मी जीवो
चैतन्यरसना ज रसिला छे; बीजा बधानो रस तेने छूटी गयो छे, रागनो