शक्तिनो पिंड विज्ञानघन ढगलो, जेना अनंत महिमानी गंभीरता विकल्पमां आवी
शके नहि, तेने धर्मी जीव अनुभवे छे. अहो, चैतन्यना रसिकजनो तो पोताना
आत्माने निर्विकल्प चैतन्यरसपणे ज अनुभवे छे. पाणीनो प्रवाह दरियामां भळी जाय
त्यां आत्मा पोताना शांत – आनंदरसमां लीन थयो.
मार्गे अंतरमां वळीने चैतन्यसमुद्रमां एकाग्र थाय छे. आत्मानो मार्ग तो गंभीर –
ऊंडो ज होय ने! जेना वडे अनादिना दुःखथी छूटकारो थाय ने अनंतकाळनुं सुख मळे
– ते मार्गनी शी वात? ते अनुभूतिनी शी वात! वचनातीत वस्तुने वचनथी तो केटली
कहेवी? अनुभवमां ल्ये त्यारे पार पडे तेवुं छे; वचनना विकल्पथी एनो पार पडे तेम
नथी. धर्मीनी पर्याय विकल्पना मार्गेथी पाछी वळी गई छे ने विवेकना मार्गे अंदर ढळी
महान छे. आचार्य भगवंतोना हृदय ऊंडाने गंभीर छे; चैतन्यना अनुभवना रहस्यो
आ समयसारमां भर्या छे.... भव्य जीवोने न्याल करी दीधा छे. वाह रे वाह!
सम्यग्द्रर्शन पामवानी ने भगवानना मार्गमां भळवानी अफर रीत संतोए प्रसिद्ध करी छे.
तेनो रसिलो थईने तेनो स्वाद ले.... एज सम्यग्द्रर्शन छे. बीजी कोई सम्यग्द्रर्शननी
रीत नथी.
पण चैतन्यना रसथी बहार छे, ते विकल्पने जे पोतानां कार्यपणे करे छे ते जीव
चैतन्यस्वरूपथी भ्रष्ट छे – अज्ञानी छे. ते विकल्पथी पण ज्ञानने पाछुं वाळीने, ज्ञान
प्रवाहने अंदर वाळीने धर्मीजीव पोताने एक चैतन्यस्वरूपे ज अनुभवे छे. धर्मी जीवो
चैतन्यरसना ज रसिला छे; बीजा बधानो रस तेने छूटी गयो छे, रागनो