: ३६ : आत्मधर्म : पोष : २४९९
स्वयं आस्वादमां आवे छे. – आवी अनुभूतिवडे, आत्मा शोभे छे. विकल्पमां
आत्मानो स्वाद आवतो नथी. भाई, तारा चैतन्यघरमां आनंदरस भर्यो छे तेने स्वयं
आस्वादमां ले; विकल्पमांथी आनंद लेवा जईश तो नहीं मळे. आवा आत्माने
सम्यग्द्रर्शनमां अनुभववो ते ज कर्तव्य छे. धर्मीनुं कर्तव्युं होय तो आ ज छे. विज्ञानघन
आत्माना रसथी भरपूर परमात्मा अनुभवमां आव्यो तेने ज सम्यग्द्रर्शन वगेरे नाम
कहेवाय छे. भावमां सम्यक् वेदन थयुं त्यारे सम्यग्द्रर्शन वगेरे साचुं नाम पड्युं.
विकल्पनी पामरतामां भगवान परमात्मा न बेसे; ते तो अंतरनी अनुभूतिमां प्रगट
बिराजे छे, विज्ञानरसथी ते भरेलो छे, विज्ञानरसमां ज्ञान–आनंद वगेरे अनंत गुणनो
रस समाय छे. वधारे शुं कहीए? शब्दोथी पूरुं पडे तेम नथी; जे कांई छे ते बधुं आ
अनुभूतिमां समाय छे, चैतन्यना अनंतगुणनो वैभव निर्विकल्प अनुभूतिमां समाय
छे. जुनो पुराणपुरुष अनुभूतिमां प्रसिद्ध थयो छे. पवित्र स्वभावी पुराणपुरुष
भगवान आत्मा अनादिअनंत एवो ने एवो छे पण पर्यायमां अनुभूति थतां ते
निर्मळ पर्याय रूपे प्रसिद्ध थयो; त्यारे तेने सम्यग्द्रर्शन – ज्ञान – अनुभूति – शांति –
परमआनंद वगेरे नामथी ओळखवामां आवे छे. अनुभूतिस्वरूप थयेला ते एक
आत्माने ज आ बधां नामथी कहेवामां आवे छे. आवो आत्मा ते ज ‘समयसार’ छे.
अनुभवमां धर्मीने ते सम्यक्पणे देखाय छे. जणाय छे श्रद्धाय छे, तेथी ते एक ज
सम्यग्द्रर्शन ने सम्यग्ज्ञान छे, तेनाथी भिन्न बीजुं कोई सम्यग्द्रर्शन के सम्यग्ज्ञान नथी.
जे कांई छे ते आ एक ज छे. स्त्री होय, पुरुष होय के नरकमां रहेलो नारकी होय, –
जेणे अंतरमां आवो आत्मा अनुभव्यो ते पुराणपुरुष छे, ते भगवान समयसार छे, ते
ज आत्मा पोते सम्यग्द्रर्शन ने सम्यग्ज्ञान छे. अतीन्द्रिय आनंदना स्वादने लेतो
अनुभूति स्वरूप थयेलो आत्मा, तेनाथी जुदां कोई सम्यग्द्रर्शन के सम्यग्ज्ञान नथी. ते
आत्मा पोते पोताना सम्यक्स्वरूपे प्रसिद्ध थयो छे, ते पोते ज सम्यग्द्रर्शनरूप थईने
परिणम्यो छे. अहो, सम्यग्द्रर्शनना गंभीर अनुभवनी अलौकिक वात आचार्य
भगवाने आ समयसारमां खुल्ली करी छे; तेमांय आ १४४ मी गाथामां तो सम्यग्द्रर्शन
थवानी रीतनुं अलौकिक वर्णन कर्युं छे, ने अमृतचंद्राचार्यदेवे तेना उपर सात कळश
चडाव्या छे.
जेम पाणी पाणीना प्रवाहमां भळी जाय, तेम चैतन्यपरिणति पहेलांं विकल्पमां
भमती हती. ते हवे चैतन्यस्वभावमां भळीने मग्न थई ने चैतन्य पोते पोताना
विज्ञानरसमां भळी गयो; हवे धर्मी एक विज्ञानरसपणे ज पोताने अनुभवे छे. अहो