ने विकल्प मारुं कर्म – एवी अज्ञानीनी बुद्धि छे. ‘हु शुद्ध छुं’ एवो अनुभव करवाने
बदले ‘हुं शुद्ध छुं ’ एवा विकल्पने ज पोतानुं कार्य मानीने अज्ञानी तेना वेदनमां
अटक्यो. विकल्पमां अटक्यो ते भटक्यो. ज्ञानी तो विकल्पथी छूटो पडीने, ज्ञानने
अंतर्मुख करीने, शुद्धनयरूप परिणति करे छे, ते परिणमनमां तेने कोईनयपक्ष नथी,
विकल्प नथी, ते निर्विकल्प पक्षातिक्रांत छे. भगवान आत्मा विकल्पवाळो नथी,
विकल्पथी चलायमान थाय तेवो नथी, के विकल्पथी वेदनमां आवे तेवो नथी. आवो
आत्मा ते समयसार छे, ते ज सम्यग्द्रर्शन छे, ते ज सम्यग्ज्ञान छे, ते ज आनंद छे, जे
कांई छे ते ज सम्यग्द्रर्शन छे, ते जसम्यग्ज्ञान छे, ते ज आनंद छे, जे कांई छे ते आ एक
ज छे. धर्मीना आवा अनुभवमां एकला विज्ञानमय आनंदरस ज भर्यो छे; तेमां
विकल्पनो रस नथी.
विकल्पने पामतो, विकल्पनो रस लेतो; हवे ज्ञानदशामां चैतन्यनी अनुभूति थई ते
आत्मानो शणगार छे, तेनाथी आत्मा शोभे छे. विकल्पना शणगार आत्माने शोभता
आनंदना पाक पाके छे. सम्यग्द्रर्शन थतां अनंतगुणनां पाक पाकया छे धर्मीजीव
विकल्पने छोडीने अंतरमां चैतन्यभावने आस्वादतो थको निर्विकल्प भावने आक्रमे छे
एटले झडपथी तेने पहोंची वळे छे. अहो! निभृत – निश्चळ पुरुषो आ आत्माने स्वयं
आस्वादे छे. जेने विकल्पोनी चिंताने दूर करी छे ने आत्मामां ज्ञानने निश्चल कर्युं छे
एवा निभृत पुरुषोने आ भगवान आत्मा स्वसंवेदनप्रत्यक्षमां पोते