Atmadharma magazine - Ank 351
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९९ आत्मधर्म : ३प :
चैतन्यरसथी भरेली अनुभूतिनो गंभीर महिमा
[मागशर वद ६–७ समयसार कळश ९३–९४ उपरनां प्रवचनमांथी.]
चैतन्यनो अनुभव नयना पक्षथी रहित छे. हुं शुद्ध छुं, हुं ज्ञान छुं एवो जे
शुद्धनयनो विकल्प, तेनो पक्ष अर्थात् तेमां एकताबुद्धि ते पण मिथ्यात्व छे. ज्ञान कर्ता
ने विकल्प मारुं कर्म – एवी अज्ञानीनी बुद्धि छे. ‘हु शुद्ध छुं’ एवो अनुभव करवाने
बदले ‘हुं शुद्ध छुं ’ एवा विकल्पने ज पोतानुं कार्य मानीने अज्ञानी तेना वेदनमां
अटक्यो. विकल्पमां अटक्यो ते भटक्यो. ज्ञानी तो विकल्पथी छूटो पडीने, ज्ञानने
अंतर्मुख करीने, शुद्धनयरूप परिणति करे छे, ते परिणमनमां तेने कोईनयपक्ष नथी,
विकल्प नथी, ते निर्विकल्प पक्षातिक्रांत छे. भगवान आत्मा विकल्पवाळो नथी,
विकल्पथी चलायमान थाय तेवो नथी, के विकल्पथी वेदनमां आवे तेवो नथी. आवो
निर्विकल्पअचल विज्ञानघन आत्मा धर्मीजीवने पोताना अनुभवमां आवे छे; आवो
आत्मा ते समयसार छे, ते ज सम्यग्द्रर्शन छे, ते ज सम्यग्ज्ञान छे, ते ज आनंद छे, जे
कांई छे ते ज सम्यग्द्रर्शन छे, ते जसम्यग्ज्ञान छे, ते ज आनंद छे, जे कांई छे ते आ एक
ज छे. धर्मीना आवा अनुभवमां एकला विज्ञानमय आनंदरस ज भर्यो छे; तेमां
विकल्पनो रस नथी.
चैतन्यतत्त्व एवडुं मोटुं महान छे के तेने विकल्पवाळो कहेवो ते कलंक छे.
अंतर्मुख निर्विकल्प पर्यायमां आत्मा प्राप्त थयो, ते ज सम्यग्द्रर्शन छे. अज्ञानदशामां
विकल्पने पामतो, विकल्पनो रस लेतो; हवे ज्ञानदशामां चैतन्यनी अनुभूति थई ते
आत्मानो शणगार छे, तेनाथी आत्मा शोभे छे. विकल्पना शणगार आत्माने शोभता
नथी, ते तो कलंक छे. आत्मा तो केवळज्ञाननी वेलडीनो कंद छे, तेनामां तो अनुभूतिना
आनंदना पाक पाके छे. सम्यग्द्रर्शन थतां अनंतगुणनां पाक पाकया छे धर्मीजीव
विकल्पने छोडीने अंतरमां चैतन्यभावने आस्वादतो थको निर्विकल्प भावने आक्रमे छे
एटले झडपथी तेने पहोंची वळे छे. अहो! निभृत – निश्चळ पुरुषो आ आत्माने स्वयं
आस्वादे छे. जेने विकल्पोनी चिंताने दूर करी छे ने आत्मामां ज्ञानने निश्चल कर्युं छे
एवा निभृत पुरुषोने आ भगवान आत्मा स्वसंवेदनप्रत्यक्षमां पोते