: र : आत्मधर्म : माह : र४९९ :
प्रवचननो मंगल प्रारंभ करतां ज गुरुदेवे कह्युं के आ नियमसार बहु ऊंची
वस्तु छे; तेना द्वारा पोताना शुद्धात्मानी भावना वारंवार करवा जेवी छे, सर्वज्ञ
परमात्मानो निर्दोष उपदेश जाणीने, में निजभावना माटे आ शास्त्र रच्युं छे.. एटले
बीजा श्रोताजनोए पण आ शास्त्र द्वारा वारंवार निजभावना कर्तव्य छे. एवी भावना
माटे आ नियमसार फरीफरीने वंचाय छे.
प्रसन्नताथी गुरुदेव कहे छे के–
आजे (माह सुद पांचमे) दशलक्षणधर्मनो पहेलो दिवस छे. वीतरागी
दशलक्षणधर्म वर्षमां त्रणवार (महा चैत्र अने भादरवा मासमां) आवे छे. तेमां माह
मासना दसलक्षण पर्वनो आजे पहेलो दिवस छे... तेथी मंगल दिवस छे, अने आजे
आपणे पण अहीं लाभचोघडीये परमागम–प्रवचनसार कोतरवानो प्रारंभ थाय छे.
मंगळमां लोको लखे छे के ‘लाभ सवाया. ’ –आपणे पण लाभनो ज प्रसंग छे.
आत्म–लाभ ते मोक्ष छे. आत्मानी पूर्ण शुद्धदशानी प्राप्तिरूप मोक्षने
‘आत्मलाभ’ कहेवाय छे. –आ पर्यायअपेक्षाए लाभ छे.
अने द्रव्य त्रणेकाळे पारिणामिकभावे प्राप्त छे, तेने ‘द्रव्य–आत्मलाभ’
कहेवाय छे.
आजे लाभचोघडीये परमागमना कोतरकाममां प्रवचनसारनी कोतरणीनो
मंगल प्रारंभ थाय छे. आ रीते धर्मना लाभनो आ प्रसंग छे.
समयसारनुं कोतरकाम आजे समाप्त थाय छे, ने प्रवचनसारना कोतरकामनो
प्रारंभ थाय छे; पंचास्तिकायनुं कोतरकाम पहेलांं पूरुं थई गयुं छे. ने नियमसारना
प्रवचनोनी आजे फरी मंगल शरूआत थाय छे. आ रीते परमागमनी प्रभावनानो
अवसर छे. अंतर्मुख थईने निजात्मानी भावना एटले के अनुभूति करवी ते वीतरागी
परमागमोनुं तात्पर्य छे.
मंगळमां जिनवाणीरूप “ ना महिमापूर्वक गुरुदेवे कह्युं के अहा! समवसरणमां
तीर्थंकर भगवानना सर्वांगेथी जे ध्वनि छूटतो हशे–ते केवो हशे? एनी शी वात! ए
वाणीमां जे शुद्धात्मा कह्यो छे तेनी फरीफरीने भावना आचार्यदेवे आ नियमसारमां
करी छे.
मंगळमां टीकाकार श्री पद्मप्रभमुनिराज सर्वज्ञपरमात्माने नमस्कार करतां कहे छे