Atmadharma magazine - Ank 353
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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३प३
आ जे... ज...
चैतन्यना आनंदनी मजा करतुं–करतुं भेदज्ञान प्रगटे छे.
भेदज्ञान आनंदपूर्वक मोहनो नाश करतुं प्रगट थाय छे.
तेने माटे अंतरमां चैतन्यनो परम प्रेम जागवो जोईए.
कोई कहे–धीमे धीमे आत्मानो प्रेम करशुं.
तो गुरुदेव कहे छे के–भाई! धीमे धीमे नहीं, आजे ज
आत्मानो उत्कृष्ट प्रेम कर. एनी अंतर धून जगाडीने
आत्माने आजे ज अनुभवमां ले... तेमां विलंब न कर.
‘बीजानो प्रेम आजे ने आत्मानो प्रेम काले’ एम न
करो. आत्माना हितना कार्यने गौण न करो. अत्यारे
ज हितनो अवसर छे, हितने माटे अत्यारे ज उत्तम
चोघडीयुं छे.
तंत्री : पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार * संपादन : ब्र. हरिलाल जैन