Atmadharma magazine - Ank 353
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: र० : आत्मधर्म : फागण : र४९९
ज्ञानस्वभावी जीव. तेनी त्रण अवस्थाओ
बहिरात्मा अंतरात्मा अने परमात्मानुं स्वरूप
ज्ञानस्वभावी जीवनी त्रण अवस्था समजावीने आचार्यदेव
परमात्मा थवानी रीत बतावे छे. कोईने एम थाय के अरे! परमात्मा
थवानी आवडी मोटी वात अमने केम समजाय? तो कहे छे के हे भाई!
आत्मानी दरकार करीने जे समजवा मांगे तेने दरेकने समजाय तेवी आ
वात छे. तारा स्वरूपमां जे छे ते ज तने बतावीए छीए. एनाथी विशेष
कांई नथी कहेता. आत्माना हित माटे जीवनमां आ वात लक्षमां लेवा
जेवी छे.
निश्चयथी बधा जीवो
ज्ञानस्वभावी एकसरखा छे;
अवस्था अपेक्षाए जीवोना त्रण
प्रकार छे– (१) बहिरात्मा; (र)
अंतरात्मा; (३) परमात्मा. आ
त्रण तो जीवनी पर्यायो छे; ने
द्रव्यस्वभावथी बधा जीवो
परमात्मस्वरूप परिपूर्ण छे, ते
स्वभावनुं भान करीने तेमां
एकाग्र थतां पर्यायमांथी बहिरात्मपणुं टळीने जीव पोते अंतरात्मा अने परमात्मा
थाय छे. परमात्मा थयेला कोई जीव फरीने बहिरात्मा न थाय, पण बहिरात्मा जीव
सम्यक्त्वादि द्वारा परमात्मा थई शके छे. अहो, एकेक जीवमां परमात्मा थवानी स्वतंत्र
ताकात, ए वात जैनशासन ज बतावे छे.
जगतमां भिन्नभिन्न अनंता जीवो छे; दरेक जीवनुं लक्षण ज्ञानचेतनाछे.
अवस्थामां ते जीवो त्रण प्रकाररूपे परिणमे छे, तेनुं स्वरूप:–