: फागण : र४९९ आत्मधर्म : र१ :
• बहरिात्मानुं स्वरूप •
पोतानुं अंतरंग ज्ञानस्वरूप भूलीने बहारमां शरीर अने जीवने एक मानीने
जे वर्ते छे ते मिथ्याद्रष्टि बहिरात्मा छे; ते तत्त्वमां मूढ छे. एवा बहिरात्मा जीवो
अनंता छे; जगतना जीवोनो मोटो भाग मिथ्याद्रष्टि–बहिरात्मा छे. पण बहिरात्मपणुं
ते जीवनुं खरुं स्वरूप नथी, एटले तेने छोडीने जीव पोते अंतरात्मा तथा परमात्मा
थई शके छे.
• अंतरात्मानुं स्वरूप •
देहथी भिन्न अंतरमां आत्मस्वरूपने जे जाणे छे ते अंतरात्मा छे. नरकमां पण
जे सम्यग्द्रष्टि छे ते अंतरात्मा छे. देडकुं, हाथी, वांदरो, सिंह वगेरे तिर्यंचोमां पण जे
जीवो देहथी भिन्न आत्माने अंतरमां अनुभवे छे तेओ अंतरात्मा छे. अंतरात्मा
असंख्याता छे. चोथाथी बारमागुणस्थान सुधीना जीवो अंतरात्मा छे.
तेमां जेओ द्विविध परिग्रहथी रहित छे–अंतरमां मिथ्यात्वादि मोहथी रहित छे
ने बहारमां वस्त्रादिथी रहित छे, अने शुद्धोपयोग वडे निजस्वरूपना ध्यानमां एकाग्र
छे एवा मुनिवरो ते उत्तम अंतरात्मा छे, एटले के सातमा गुणस्थानथी बारमा
गुणस्थान सुधीना जीवो उत्तम अंतरात्मा छे.
अंतरमां आत्माना अनुभव सहित जेओ देशव्रती–श्रावक छे के महाव्रतीमुनि छे
तेओ मध्यम–अंतरात्मा छे, एटले के पांचमा ने छठ्ठा गुणस्थानवर्ती जीवो मध्यम–
अंतरात्मा छे;
अने अविरत–सम्यग्द्रष्टि एटले जेने व्रतादिक न होवा छतां पण अंतरमां देहथी
भिन्न शुद्धआत्माना अनुभवरूप सम्यग्दर्शन थयुं छे ते जीवो जघन्य अंतरात्मा छे.
आ रीते उत्तम–मध्यम अने जघन्य एम त्रण प्रकारना अंतरात्मा जाणवा. –
चोथाथी बारमां गुणस्थान सुधीना आ बधाय अंतरात्मा जीवो आत्माने जाणनारा छे
ने मोक्षमार्गमां चालनारा छे. बार अंगने जाणनारा गणधरभगवान, अने एक नानुं
सम्यग्द्रष्टि देडकुं–ए बंने अंतरात्मा छे, बंने ‘शिवमगचारी’ छे–मोक्षमार्गी छे. जुओ,
चोथा गुणस्थानवर्ती सम्यग्द्रष्टिने पण मोक्षमार्गी कह्या छे. समन्तभद्रस्वामीए पण
कह्युं छे के– ‘गृहस्थो मोक्षमार्गस्थ’ (रत्नकरंडश्रावकाचार)